बिजलियों का चमकना और बादलों का गर्जना उसे उतना नहीं डरा रहा था जितना कि समाज के गर्जनों से डर था।अभी अभी शाम हुई थी मगर हल्का हल्का अंधेरा आसमान के वजूद पर छाता जा रहा था।काले काले बादल हल्के हल्के उजालो को अपनी बाहों में समेटने को बेताब थे।विनय असमंजस में था। नैना भी कम परेशान न हुई इस अचानक आ चुके मुसीबत से।अच्छा खासा मौसम एकाएक बिगड़ गया था।उसे एक प्लॉट देखना था।पति को फुर्सत बिल्कुल न थी ,उन्हें मीटिंग के सिलसिले में शहर से बाहर जाना पड़ा था।एजेंट से बात की जा चुकी थी ।वो उसी कॉलोनी में में घर बनवाना चाहती थी जहाँ उसकी दोस्त अपने भाई के यहाँ रहते हुए जॉब करती थी।अभी नई नई कॉलोनी बन कर तैयार हुई थी।उसने सोचा क्यों न अचानक उस जगह जाकर शीला को सरप्राइज कर दे।वैसे उसका आना जाना बहुत बार हो चुका था।आस पास के रहने वाले लोग भी थोड़ा बहुत पहचानने लगे थे कि वो शीला की दोस्त हैं।नैना का फ्लैट से शीला के कॉलोनी तक का सफर दो घण्टे का था।शीला का भाई विनय से भी उससे काफी बातें होती थी।वो उसे बहन के समान इज्जत देता था।मगर आज दोनों उलझन में थे।जब वो प्लॉट देख चुकी थी तो उसने शीला के घर का रुख किया था ।दरवाजा विनय ने खोला था।
'अरे नैना जी आप?शीला तो मामा के यहाँ आज सुबह गयी है।परसों आएगी।"
"ओह मुझे लगा आज सरप्राइज दूँगी इसलिए कॉल पर उसे नहीं बताई"
"कोई बात नहीं ,आईये अंदर बैठिये"
"और बताओ सब कैसा चल रहा,जॉब के लिए अप्लाई किया?"
"अप्लाई तो है लेकिन देखते है क्या होता है"
विनय उसे बाल्कनी में ले आया।वही उसने चाय बना कर पिलाई।आसपास के पड़ोसी कभी कभी अपनी बाल्कनी में आकर उनपर भी नजर डाल देते।दोपहर दो बजे वो घर से निकली हुई थी।तीन बज गए उसे प्लॉट मुवायना करने में।जब शीला के यहाँ आयी तो बात करते करते कब पूरी तरह शाम हो गयी और कब मौसम ने अपना रंग बदल लिया पता ही न चला। अब नैना को न तो चलते बनता था न विनय को कुछ कहते बनता था। बादल जो अब तक सब्र किये हुए थे बरस पड़े।बूंदा बांदी जोरों की होने लगी।आधे घण्टे बीत जाने पर भी बारिश नहीं थमी।अब अंधेरे का पूरा सम्राज्य था।दोनों को कुछ भी नहीं सूझ रहा था।विनय चाहता था कि नैना रुक जाती।वो जानता था कि इतने खराब मौसम में सफर खतरे से खाली न था।मगर उसे झिझक थी कि न जाने नैना क्या सोचे?
इधर नैना को ये उलझन नहीं था कि वो क्या सोचेगी।उसे विनय पर भरोसा था। वो एक अच्छा लड़का था।लड़के होने का ये मतलब भी तो नहीं होता कि सब फायदे उठाने वाले हो।उनकी भी गरिमा होती है।वो भी कुछ भावनाएं रखते है,बहन की या दोस्त की या फिर एक औरत की इज्जत की उसकी गरिमा की।इंसान कुछ तो समझ मे आ ही जाता है ।विनय भी उन्ही में से एक था।दोनों को एक दूसरे पर भरोसा था ।बस भरोसा नहीं था तो रात पर सोच रखने वाले समाज पर। वो अगर रात भर ठहर जाती है तो आस पास के लोगों के शक भरी नजरों को रोका नहीं जा सकता था।उसकी सास और पति के जब तब तानों को रोका नहीं जा सकता था ।वो वक्त पड़ने पर शक को सही का रूप दे सकते थे कि न जाने तुमने अपना मुख उजला ही रखा या.....।
इधर विनय को भी यही चिंता सता रही थी कि ये एक रात पूरी जिंदगी उस पर उंगलिया उठाता रहेगा।उसे हंसी भी आई समाज के सोच पर।'क्या गलत सिर्फ रात के साम्राज्य में हो सकता है?दिन के उजालो में भी तो अपराध के बादल छा सकते है'कितना अजीब था।पूरे दिन नैना उसके घर में चहलकदमी कर सकती थी।उसके माथे का सिंदूर और मंगलसूत्र भी दिन भर के लिए लोगों के आंखों पर भ्रम का चश्मा डाल सकते थे कि दिन की बात है. लेकिन रात ?उस पर तो नैना का सिंदूर भी शक करने का हक रखता था। दोनों उलझन में थे और हालात को समझ भी रहे थे ।इधर तूफान रुकने का नाम ही न लेता था।वर्षा जोरों पर थी।नैना ने फैसला ले लिया।वो भले आंधियो ,तुफानो को झेलते घर जाएगी या भले फिसलन भरी सड़को पर दुर्घटनाओं के आशंकाओ में गिर जाएगी जिससे इनकार नही किया जा सकता था फिर भी ये परेशानियां समाज और रिश्तों में घिर जाने वाले शक रूपी तूफानों से बेहतर जान पड़ी।उसकी मजबूरी कौन समझता कि वो क्यों ठहरी?उसकी बातों पर कौन भरोसा करता कि वो एक भले इंसान के साथ ठहरी थी।सबको सिर्फ नजर आता तो एक स्त्री और पुरुष और एक रात।नहीं एक रात में वो पूरी जिंदगी की शक की अंधेरी रात नही गुजार सकती थी।उसने फैसला ले लिया वो घर जाएगी।
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Thursday, June 27, 2019

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