विभाग प्रसन्न है। महिला अधिकारी पोस्टिंग पर आ रही हैं। जानकारी मिली है मैडम ख़ूबसूरत हैं। विभाग को आशा है यहां की वायु और ऋतु ताज़ादम हो उठेगी।
अपेक्षाकृत छोटी जगह से आई मैडम इस बड़ी जगह को देखकर घबरा नहीं रहीं, किंचित् परेशान हैं। मैडम से सभी जोशीले अंदाज़ में मिले, पर वे ऐसे संकोच, बल्कि दहशत, से मिलीं मानो किसी से परिचय नहीं करना चाहतीं।
पहली विभागीय टिप्पणी,‘‘अभी नई हैं। धीरे-धीरे खुलेंगी।’’
मैडम यद्यपि विभागीय लोगों से संकोच से मिलीं, तथापि समझती हैं किसी भी कार्यालय की तरह यहां भी उन्हें एक बड़े पुरुष वर्ग का नियमित सामना करना है। इस बाबत उन्हें किसी को अपना शुभचिंतक अर्थात् सहयोगी बनाना होगा। तभी यहां खपना आसान हो सकेगा। तीन व्यक्ति हैं, जो मैडम के लिए काम के साबित होंगे। पहले है मैडम के इंस्पेक्टर, रामसेवक। मैडम बच्चियों के एडमिशन, गैस कनेक्शन, फ़र्नीचर, परदे इत्यादि की ख़रीद के लिए रामसेवक को घर तलब करने लगीं और आप मैडम की व्यक्तिगत सूचनाओं का विश्वस्त सूत्र बन गए,‘‘मैडम की दो बेटियां हैं। फ़र्स्ट और थर्ड में पढ़ती हैं। पति शहडोल में व्याख्याता हैं। लोग कहते हैं मैडम मिलनसार नहीं है, जबकि मेरे साथ बहुत हंसमुख होती हैं।’’
दूसरे हैं आयकर सलाहकार नील नारंग। मैडम इनसे कुछ क़ानूनी बिन्दुओं पर डिस्कस करती हैं। नील नारंग अनुमान लगाते हैं-मैडम में ज्ञान और कौशल का अभाव है, इसलिए मैडम को इनकी सहायता लेते रहना होगा।
तीसरे हैं इस कार्यालय के सर्वाधिक सक्रिय वक़ील निश्छल कुलश्रेष्ठ। ये विभाग के सबसे ज़रूरी और सर्वोदई टाइप के व्यक्ति हैं। मैडम की मेज पर इनके केस बहुतायत में हैं। इनका काफ़ी समय मैडम के कक्ष में प्रकरण निपटाते हुए व्यतीत होता है। निश्छल कुलश्रेष्ठ की अनुभवी दृष्टि ने भांप लिया है मैडम कार्यदक्ष नहीं हैं। घूस-रिश्वत भी खुलकर नहीं मांग पाती हैं। जो दे दो, यथेष्ट मान लेती हैं।
यदि सर्वेक्षण कराया जाए तीनों में किसका आधार मज़बूत है तो सुई निश्चल कुलश्रेष्ठ की ओर घूमती है। रामसेवक मैडम के मातहत हैं। नील नारंग मैडम को विश्वसनीय जान नहीं पड़ते। कुलश्रेष्ठ की सर्वोदई छवि की जानकारी मैडम को हो चुकी है, अतः प्रकरण संबंधी क़ानूनी अड़चनें, सावधानियां, बारीकियां, धाराएं, बोर्ड और हाईकोर्ट के फ़ैसले, किसी विशेष प्रकरण में विशेष परिस्थिति में मिलनेवाली कर की छूट, हानि-लाभ इत्यादि कुलश्रेष्ठ से पूछती रहती हैं। जानकारी प्राप्त करना सीधे उजागर न हो, इस हेतु बतौर सावधानी वार्ता में आत्मीयता को स्वल्प स्पर्श देते हुए बाज़ार भाव, धर्म, राजनीति, चुनाव, विभाग के यम-नियम, लोगों की कार्य पद्धति, विचार इत्यादि औपचारिक संदर्भों पर कुछ कहती-सुनती हैं।
कुलश्रेष्ठ प्रचारित करते हैं,‘‘मैडम मेरे साथ बड़ी जल्दी बेतकल्लुफ़ हो गईं।’’
रामसेवक कहते,‘‘मेरे साथ भी।’’
नील नारंग कहते,‘‘मेरे साथ भी।’’
ये तीनों इन दिनों प्रतिद्वंद्विता और आपसी समीपता एक साथ महसूस कर रहे हैं। मैडम के संदर्भ में तीनों कुछ बातें छिपा लेते हैं, कुछ उद्घाटित करते हैं। तीनों की कोशिश रहती है तथ्यों को इस ढंग से रखें जिससे अनुमान निकले-मैडम एक उन्हीं से प्रभावित हैं।
रामसेवक बताने लगते,‘‘मैडम मुझे घर बहुत बुलाती हैं।’’
नारंग कटाक्ष करते हैं,‘‘गैस सिलेंडर भरवाते होंगे, बच्चियों की स्कूल फ़ीस जमा करवाते होंगे, मैडम के शहडोल जाने का रिज़र्वेशन करवाते होंगे।’’
रामसेवक ज़ोर देकर कहते,‘‘काम तो बहाना है। काम छोटा होता है। बैठक लंबी जमती है।’’
कुलश्रेष्ठ अपने पत्ते जल्दी नहीं खोलते। प्रहसन का-सा आनंद लेते हुए अपनी चतुर-चालाक मुस्कान को प्रस्फुटित करते हैं,‘‘काश, हम भी किसी बहाने मैडम के घर गए होते।’’
रामसेवक के मुख पर गौरव,‘‘अपनी-अपनी तक़दीर है, कुलश्रेष्ठ जी! मैडम के पति यहां रहते नहीं तो बहुत से काम हमें ही संभालने पड़ते हैं।’’
यहां रामसेवक यह तथ्य छिपा लेते हैं जब वे एक ही कॉलोनी में रहने का लाभ लेते हुए शाम को मैडम के घर जाते हैं और पूछते हैं,‘टहलने निकला तो सोचा, पूछता चलूं मेरे लायक कोई काम हो।’
तब मैडम शासनपूर्ण सख़्ती से कह देती हैं,‘रामसेवकजी, जब बुलाया जाए तब आएं।’
नील नारंग बताते हैं,‘‘मैडम मेरी सहायता के बिना प्रिपरेशन नहीं कर सकतीं। उनमें विवेक-बुद्धि नहीं है। मदद कर मोहतरमा को कृतार्थ कर रहा हूं। दरस-परस होता है, चाय-कॉफ़ी का दौर भी।’’
रामसेवक, नारंग को तिर्यक होकर देखते हैं,‘‘अच्छा, तो आपकी अब तक निलंबित रही बुद्धि बहाल हो गई, जो मैडम की मेज का काम आप ही संभाल रहे हैं?’’
रामसेवक ने नारंग का हौसला तोड़ना ज़रूरी समझा,‘‘आप मैडम की चतुराई समझें, नारंगजी। वे आप पर काम थोप रही हैं।’’
कुलश्रेष्ठ ठीक मौक़े पर कूद पड़ते हैं,‘‘आप तो नारंगजी, लगे रहें। मैं नाचीज़ आपके कुछ काम आ सकूं तो ख़ुद पर गर्व महसूस करूंगा।’’
नारंग उपलब्धि भरी हंसी हंसते हैं। नारंग नहीं बताते जब उत्साहित होकर किसी प्रकरण में लीगल पॉइंट्स बताने की बुद्धिमानी दिखाते हैं, मैडम डोज़ दे देती हैं,‘जब आपसे पूछूं, कृपया तभी बताएं।’
‘सॉरी मैडम।’ नारंग अचकचा जाते हैं। इन्हें मैडम की यह उपेक्षा भरी फटकार पुरुषोचित अहं पर हमला जान पड़ती है।
तीसरे उम्मीदवार निश्छल कुलश्रेष्ठ ग़ज़ब के व्यक्तित्व हैं। इनकी बौद्धिक ऊर्जा, तर्क, आग्रह ग़ज़ब के हैं। इनकी पहली प्राथमिकता तमाम दंद-फंद कर अपने मुवक़्क़िल पर लगे कर को घटाना अथवा समाप्त कराना होता है। ये कौन-सी बात ज़ाहिर करते हैं, कौन-सी नहीं, इनके अतिरिक्त कोई नहीं जानता। बताने लगे,‘‘आयकर आयुक्त आ रहे थे। उन्हें रिसीव करने मैडम को भी रेलवे स्टेशन जाना था। स्टेशन आठ किलोमीटर दूर। परेशान थीं। बोलीं, ‘मैं विभागीय लोगों के साथ नहीं जाना चाहती।’ परेशानी होती है। मैंने स्थिति को समझा। ड्यूटी करनी है और महिला होने की ढेर परेशानियां। मैंने ड्राइवर के साथ अपनी कार भेज दी।’’
सुनकर रामसेवक मलिन पड़ गए। मैडम को गाड़ी चाहिए तो उनसे कहें! वे किसी व्यापारी की गाड़ी भेज देंगें।
नारंगजी थोड़ा हंसे,‘‘कुलश्रेष्ठजी, आप मैडम के नियर-डियर बनते जा रहे हैं। मालूम होता है, बाज़ी आपके हाथ लगेगी।’’
‘‘आप भ्रम में न रहें, नारंगजी। मुझे लगता है, मैडम हमें महत्व कम देती हैं, इस्तेमाल अधिक कर रही हैं।’’ रामसेवकजी का तात्पर्य ‘हमें’ के स्थान पर ‘आप दोनों’ से है।
प्रसंगवश बता दें, विभाग में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो मैडम को स्त्री नहीं पदाधिकारी मानते हैं। इनका मानना है, जो लोग मैडम को इस तरह चर्चित-प्रचारित कर रहे हैं वे मानसिक विलासिता, चारित्रिक भटकाव, प्रमाद, कुंठा अथवा हीनता से संक्रमित हैं।
कुल मिलाकर कार्यालय में चुहल-चुटकियों का दौर चल रहा है। मैडम की गतिविधि पर नज़र रखी जा रही है,‘‘आज काजल लगाकर आई हैं।’’
‘‘काजल की बात करते हो। अभी एक पार्टी में लाली लगाए हुए थीं।’’
‘‘सुना है वह तिकड़ी मैडम की जिगरी बनी हुई है।’’
‘‘बकवास है। तीनों ख़ुद को बेवजह उछाल रहे हैं।’’
‘‘कुलश्रेष्ठ, मैडम के लिए काम के आदमी हैं। मैडम भली प्रकार काम जानती नहीं हैं और।।।’’
‘‘काम कैसे जानें? क़ानून की किताबें देखने की फ़ुर्सत ही कहां मिलती होगी? गृहस्थी, बच्चियां, शहडोल प्रवास।’’
‘‘सुना है, रात की पार्टियों में नहीं जातीं।’’
‘‘औरतों को बहुत सोचना पड़ता है।’’
‘‘क्लोज़िंग के समय ऑफ़िस में देर तक काम चलता है। मैडम पांच बजते ही घर जाने को फड़फड़ाने लगती हैं कि बच्चियां अकेली हैं। सुनते हैं, बड़े साहब (आयकर सहायक आयुक्त) का आदेश भी नहीं मानतीं। अरे, पद संभाला है, ज़िम्मेदारी भी संभालो।’’
मैडम बड़े साहब को समुचित आदर देती हैं पर देर तक रुकने को सहमत नहीं होतीं। साहब इसे अवमानना समझते हैं। कुलश्रेष्ठ चूंकि इस कार्यालय के सर्वाधिक ज़रूरी तत्व हैं, इसलिए साहब के लिए भी नितान्त आवश्यक और अपेक्षणीय हैं। अपने भव्य चेम्बर में विराजे साहब, कुलश्रेष्ठ से बोले,‘‘कुलश्रेष्ठजी, मैडम आपको कुछ विचित्र नहीं लगतीं? उनके चेम्बर में आपका काफ़ी वक़्त गुज़रता है। आपका क्या ख़्याल है?’’ साहब बेचैन थे।
कुलश्रेष्ठ बोले,‘‘भली हैं। काम में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करतीं।’’
‘‘हस्तक्षेप तब करेंगी ना यदि क़ानूनी प्रक्रिया को ठीक-ठीक समझेंगी।’’
‘‘।।।’’
‘‘विज़िट पर चलने को कहो तो क्षमा चाहती हैं कि उन्हें बाहर आने-जाने में असुविधा होती है। यह क्या बात है? पद पर हैं तो दौरे करने ही होंगे।’’
‘‘महिलाओं को कुछ दिक़्क़तें होती हैं,’’ कुलश्रेष्ठ, साहब के समक्ष गुरु-गम्भीर बने रहते हैं।
‘‘हां, जैसे।।। गाड़ी में चार व्यक्ति हैं तो मैडम किसके पास बैठें? मर्द तो गाड़ी रुकवाकर कहीं भी फारिंग हो ले, मैडम जहां-तहां नहीं बैठ सकतीं। दौरे पर नहीं जाना चाहतीं। हम अपना व्यक्तिगत काम तो कराते नहीं। कार्यालयीन काम है, जिसका आप वेतन लेती हैं। ।।।क्या है न, मैडम साथ में रहें तो तबीयत हलकी लगती है!’’
ऊंचे व्यक्तित्व भी भीतर से बौने साबित होते हैं।
‘‘राइट सर।’’
कुलश्रेष्ठ नस पहचानकर सही नस ही पकड़ते हैं। एक की बात दूसरे से नहीं कहते। सभी के प्रिय तथा राज़दार बने रहते हैं। यही कारण है, मैडम अन्य के साथ संकोच से परिचित हुईं, कुलश्रेष्ठ के साथ आरंभिक हिचक के बाद कुछ खुलने लगीं। इतने बड़े कार्यालय में खपना है तो किसी पर भरोसा करना पड़ेगा।
कुलश्रेष्ठ मैडम के कक्ष में केस कराने पहुंचे। वे फ़ाइल खोले हुए थीं।
‘‘आज इस केस का निपटारा हो जाए।’’
‘‘आप तो मैडम आदेश करें,’’ कुलश्रेष्ठ ने फ़ाइल पर नज़र डाली।
‘‘मैं पहले छोटी जगह में थी। वहां इतना काम नहीं था। यह बड़ी जगह है। पूरे संभाग का काम यहां होता है। वर्कलोड बहुत है।’’
‘‘आप जिस ज़िम्मेदारी से काम करती हैं, वह अद्भुत है।’’
‘‘बावजूद इसके साहब फ़रमान जारी करते हैं कि मुझे दफ़्तर में देर तक रुककर काम करना चाहिए!’’
‘‘उन्हें कौन मार्गदर्शन दे सकता है? मेरा तो मानना है, जब से आप आई हैं, काम ने अच्छी गति पकड़ी है। आप न अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करती हैं, न काम को रोककर रखना चाहती हैं। यहां ऐसे-ऐसे विचित्र अधिकारी आए हैं कि क्या कहें। एक साहब बहुत ईमानदार थे; पर उनका व्यवहार ऐसा जैसे घूस न लेकर हम पर एहसान कर रहे हैं। हरदम बौखलाए रहते थे। चाहते थे-वे ईमानदार हैं, इसलिए उन्हें अतिरिक्त सम्मान दिया जाए। कई बार वे ऐसे बिंदु पर अड़ जाते थे, जो निरर्थक साबित होते थे।’’
‘‘आप लोग काम कैसे कर पाते थे?’’
‘‘कर पाते थे। हम लोगों को अधिकारियों के उपद्रव सहने की आदत है।’’
‘‘उपद्रव! ओ गॉड! क्या आप मेरा भी कोई उपद्रव बताएंगे?’’
‘‘आप काम में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करती हैं।’’
फिर कुलश्रेष्ठ ने इन बातों को नारंग और रामसेवक के समक्ष कुछ इस तरह रखा,‘‘मैडम मुझे अपना सबसे बड़ा शुभचिंतक मानने लगी हैं। हमारी निगहबानी में रहें तो उनके योग-क्षेम की गारंटी हमारी।’’
बात रामसेवक को सहज ग्राह्म नहीं हुई,‘‘अच्छा कुलश्रेष्ठजी, आपको ऐसा नहीं लगता, मैडम हम तीनों से कुछ ज़्यादा ही काम लेती हैं?’’
‘‘इश्क़ करना है तो मशक़्क़त करनी पड़ेगी। रामसेवकजी, मैं मैडम के कार्यकाल में जितनी आसानी से केस निपटा रहा हूं, वह पहले कभी नहीं हुआ।’’
कुलश्रेष्ठ शक्तिभर मोरचे पर डटे रहना चाहते हैं।
‘‘हां, काम आसान हो गया है।’’ नारंग ने अनुमोदन किया।
‘‘आप दोनों भ्रम में न रहें। मैडम अपने काम के आदमियों को चुनकर अपना काम आसान कर रही हैं,’’ रामसेवक, कुलश्रेष्ठ के हौसले पस्त करना चाहते हैं। इन्हें आभास है, कुलश्रेष्ठ बढ़त बनाते जा रहे हैं।
कुलश्रेष्ठ को झटका लगा,‘‘रामसेवकजी, मर्द स्त्री का इस्तेमाल करे या स्त्री मर्द का, मूल रूप से स्त्री ही इस्तेमाल होती है। स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर इनका इस्तेमाल और भी आसान हो गया है। विश्व सुंदरी, ब्रह्मांड सुंदरी बाज़ार के लिए इस्तेमाल हो रही है। ये ख़ुद को स्वतंत्र, स्वावलंबी, स्वशासी मानती हैं तो मानें।’’
‘‘ठीक फ़रमाते हैं। यदि हमारा इस्तेमाल हो रहा है तो यही सही। हमें मैडम की मौजूदगी की, उन्हें देखने की, सुनने की, संवाद करने की आदत पड़ गई है,’’ नारंग स्वयं को उम्मीदवारी से खारिज करने को तैयार नहीं हैं।
मैडम को कभी किसी सूत्र से ज्ञात हो, ये जो उनके सहयोगी बने हुए हैं उन्हें पदाधिकारी के स्थान पर निखालिस स्त्री समझते हैं, तब वे कितनी परेशान होंगी, कहा नहीं जा सकता। ओहदे को उपेक्षित कर उसमें आरूढ़ स्त्री को लक्षित किया जाए, यह किसी भी स्त्री के लिए अपमानजनक होगा। मैडम के लिए भी है।
केस की फ़ाइल कुलश्रेष्ठ ही देख रहे थे। उनके साथ वह व्यापारी भी था जिसका केस था। व्यापारी मैडम को निरंतर देखे जा रहा था। उन्हें असुविधा हो रही थी।
‘‘मिस्टर! इस तरह घूर रहे हैं? आप आदमी हैं या।।।’’
‘‘ज।।। ज।।। जी।।। मतलब?’’
‘‘मैं डिस्टर्ब हो रही हूं।’’
‘‘मैडम! आप मुझे टॉर्चर कर रही हैं। मेरे केस की फ़ाइल है और मैं आपकी ओर देखूंगा नहीं? मेरी नज़र ऐसी ही है। इसके लिए मुझे आज तक किसी अधिकारी ने नहीं टोका।’’
‘‘न टोका होगा। स्त्रियों के समक्ष कैसे प्रस्तुत हुआ जाए, आपको इसकी तमीज़ नहीं है,’’ मैडम हांफते हुए बोलीं।
‘‘आप तो ऑफ़िसर हैं।’’
‘‘गेट आउट।।। गेट आउट!’’ मैडम के कंठ से घुटी हुई ध्वनि निकली।
‘‘निरंकारीजी, आप बाहर जाइए,’’ कुलश्रेष्ठ को जैसे चेत आया। उन्होंने व्यापारी को कक्ष से बाहर भेज दिया।
निरंकारी के जाने के बाद कुलश्रेष्ठ ने मैडम को ताका।
‘‘मैडम, ये यहां के पुराने और घुटे हुए लोग हैं। किसी की नहीं सुनते।’’
मैडम गहरी निराशा में। जैसे दिए गए अधिकारों को छीन लिया गया है अथवा अधिकारों का प्रयोग करने की स्वतंत्रता नहीं है।
‘‘अभद्रता अनदेखी की जानी चाहिए?’’ मुद्रा कुछ ऐसी करुण मानो लाख दृढ़ता दिखाएं, पर स्वयं ही अपने स्त्री होने के दुर्बल बोध से छूट नहीं पा रही हैं।
‘‘क्या कीजिएगा? यहां तमाम तरह की घटनाएं होती रहती हैं। एक बार इसी दफ़्तर के एक चपरासी ने एसी के बंगले पर जाकर ख़ूब गाली-गलौज की। एक छोटा व्यापारी, जिसे लाखों टैक्स लगा था, एसी के चेम्बर में ही उन्हें मुफ़्तखोर, घूसखोर कहता रहा; फिर बहुत रोया कि सिर के बाल बेचकर टैक्स भरूं? हमें जीने देंगे?।।। ऐसा हो जाता है। फिर भी मैं मानता हूं, महिला अधिकारी के सामने सौहार्द बनाए रखना चाहिए।’’ कुलश्रेष्ठ मैडम को कंसोल करना चाह रहे थे कि एक उन्हीं के साथ यह नहीं हुआ है।
‘‘महिला अधिकारी! मतलब? अधिकारी, अधिकारी होता है, पुरुष या स्त्री नहीं। उसे पदाधिकारी की तरह ही मान्यता दी जानी चाहिए,’’ मैडम ज़ोरदार ढंग से खंडन करना चाहती थीं; किंन्तु स्त्री बोध दुर्बल बना रहा था।
‘‘ऐसा होना चाहिए।’’
‘‘आपका यह शहर अजीब है, कुलश्रेष्ठजी। आपके लोग अजीब हैं। रामसेवकजी की बात कर रही हूं। कभी किसी आवश्यक काम के लिए रामसेवकजी को घर बुला लेती हूं तो वे टहलते हुए चाहे जब आने लगे। मजबूरन मुझे कहना पड़ा,‘जब बुलाया जाए तब आएं।’’
मैडम प्रसंग बदलकर स्वयं को सामान्य दर्शाने की चेष्टा करती जान पड़ीं।
कुलश्रेष्ठजी उत्फुल्ल हो उठे और मन ही मन सोचने लगे,‘रामसेवकजी, आपकी कोशिशें निरुद्देश्य नहीं, पर निष्फल हैं।’ फिर उन्होंने मैडम से कहा,‘‘पद की गरिमा को समझना चाहिए। पदाधिकारी स्त्री हो तब तो पूरी सावधानी के साथ व्यवहार करना चाहिए।’’
‘‘मैं सावधानी की बात नहीं कर रही। दरअस्ल लोग पद और पदाधिकारी के संदर्भ में स्त्री-पुरुष का विभेद ले आते हैं। यह ग़लत है,’’ मैडम ने अपना मत दोहराया।
कुलश्रेष्ठ कह देना चाहते थे,‘मैडम, आपको लगता है, व्यापारी घूर रहा है, रामसेवक अनावश्यक घुसपैठ करते हैं, विज़िट पर जाना नहीं चाहतीं, दफ़्तर में देर तक रुक नहीं सकतीं लेकिन कहती हैं, पद के बीच में स्त्री-पुरुष का विभेद न लाया जाए।’ किंतु प्रकट में बोले,‘‘मैडम, मैंने कुछ ग़लत कह दिया हो तो क्षमा करें।’’
मैडम की चिंता और तनाव कुछ कम हुआ,‘‘आप व्यापक दृष्टि रखते हैं। इसीलिए आपसे कुछ बातें कह लेती हूं।’’
तीन वर्ष पूरे होते न होते मैडम का स्थानांतरण हो गया। कुलश्रेष्ठ, रामसेवक, नारंग ने मैडम को अपने घर मध्यान्ह भोज पर आमंत्रित किया। मैडम तीनों के परिवार से प्रसन्नतापूर्वक मिलीं। तीनों को अच्छे सहयोग तथा सामंजस्य के लिए धन्यवाद दिया। मैडम कुलश्रेष्ठ की पत्नी स्तुति से पहली बार मिल रही थीं, फिर भी आत्मीय हो गईं। स्तुति के पीछे-पीछे रसोई में पहुंच गईं। वे स्तुति की ओर केंद्रित रहीं। घरेलू क़िस्म की बातें करती रहीं। कुलश्रेष्ठ ने ध्यान दिया, मैडम इस समय तनाव, झिझक, दबाव में कतई नहीं हैं। प्रसन्न और स्वाभाविक दिख रही हैं। चलते समय स्तुति से बोलीं,‘‘आपके परिवार के साथ समय बिताकर अच्छा महसूस कर रही हूं। कुलश्रेष्ठजी बहुत सहयोगी वृत्ति के सुलझे हुए व्यक्ति हैं। आप बहुत स्नेही और शांत हैं। शायद इसीलिए आपके घर का वातावरण सौहार्दपूर्ण है।’’
तत्पश्चात् मैडम कुलश्रेष्ठ से संबोधित हुई,‘‘कुलश्रेष्ठजी, यहां का स्टाफ़ अच्छा है। आप सभी ने मुझे अच्छा सहयोग दिया। मेरा काम सहज व आसान हो सका। ख़ासकर आपने बहुत सहयोग किया। मैं हमेशा आपको याद रखूंगी।’’
‘‘मैं चाहता हूं, आप एसी बनकर यहां आएं,’’ कुलश्रेष्ठ ने सदिच्छा दर्शाई।
मैडम के जाने के बाद स्तुति कहने लगी,‘‘बड़ी भद्र और शालीन महिला हैं। इतने बड़े पद पर होते हुए भी दर्प-दम्भ नहीं है। मैं डरी हुई थी, पर मैडम तो बहुत सहज-सरल बल्कि घरेलू लगीं।’’
पता नहीं क्या था स्तुति के कथन में। पता नहीं क्या था विदा होती हुई मैडम की मुद्रा में। कुलश्रेष्ठ को लगा, वे तेज़ी से बदल रहे हैं। पता नहीं क्यों, पर पहली बार-हां, पहली बार कुलश्रेष्ठ को पछतावा हुआ। ‘क्यों इस स्त्री को अनावश्यक रूप से चर्चित कर दिया गया? ये तो तमाम अधिकारियों की तरह ही कभी सहज कभी असहज, प्रसन्न-अप्रसन्न, रुष्ट-तुष्ट, सरल-जटिल, सहयोगी-असहयोगी, विज्ञ-अविज्ञ रहीं। स्त्री होने के बोध से इस कदर दबी रहीं कि न कभी अपने अधिकारों का खुलकर
प्रयोग कर पाईं, न किसी बिंदु पर ज़िद्दी होकर अड़ी रहीं। उन्होंने ऐसा कोई व्यवहार नहीं किया, जो पदाधिकारी की सीमा से बाहर हो। हम लोगों की क्षुद्रता ये कि हमारे लिए इनका स्त्री होना इतना महत्वपूर्ण हो गया कि हमने इन्हें पदाधिकारी की तरह देखना ज़रूरी नहीं समझा। इन्हें मनोरंजन का केन्द्र बनाकर हम तीनों ने शायद अपनी लंपटता, टुच्चापन ही उजागर किया है। शायद एक लफंगापन, घटिया विचार, कुंठा प्रत्येक पुरुष के भीतर हर वक़्त, हर उम्र में कुलबुलाती रहती है। स्त्रियों के संबंध में निराधार चर्चा कर हम लोग रति सुख पाते हैं। मैडम मेरे प्रति कृतज्ञ हैं। मैं उनके प्रति जो शुभ चिंतना रखता रहा वह जान पाएं तो उनका स्वाभिमान किस तरह चूर हो जाएगा? ओह! इनका पद, शक्ति, क्षमता वैसी है जैसे किसी भी पुरुष अधिकारी की होती है; फिर भी कार्यालय में रहना आसान हो सके, सब कुछ ठीक-ठाक चले, इसलिए इन्हें किसी को सहयोगी बनाना पड़ता है। सजग-सतर्क रहना पड़ता है। किसी को क्या हक था ठेठ अफ़वाहें फैलाकर मैडम को चर्चित करने का? हम पुरुष ऐसे क्यों हैं? क्यों? क्यों?’
मैडम के स्थान पर नेमीचंद धगट आ गए हैं। जब कभी मौज में आकर नारंग और रामसेवक, मैडम की चर्चा करते हैं, कुलश्रेष्ठ उदास हो जाते हैं। नारंग व रामसेवक उनकी उदासी का कारण तलाशने लगते हैं।
लेखिका: सुषमा मुनीन्द्र
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