नीति, विधि, दया – धर्म का, मत बदलो उसूल
बाकी को रख ताक पर, सब के सब फिजूल।
बात पते की हो अगर, और हो उपकार
जैसे स्वार्थ के बिना , खिल रहे सब फूल।
वह कर्मठ इंसान है, रखे सच को साथ
मानव वह शैतान है, करता ऊलजलूल।
माता- पिता या हो गुरु, सबका हो सम्मान
तेरे ही उपकार में , राम – बने रसूल।
अब तो सज्जन हम बने, करें हित की बात
प्रेम की वर्षा हो अगर , उड़े कभी न धूल।
आपस में दिल जोड़ के, करें जग कल्याण
क्यों जाते तुम नर्क को , क्यों चुभाते शूल ?
कर्म अपना प्रधान रख, निंदा करना छोड़
मायावी कुछ लोग हैं, कर जाते हैं भूल।
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