सुबह सुबह..
पिंकी:- माँ देख, पिता जी बोलते है कि तू लड़की है,मुझे लड़का चाहिए ।
रीमा:- छोड़,उनकी बात का ध्यान मत दे। तुम्हारे पिता है।और हाँ!आज तो तुम्हरा दौड़ है तो अच्छे से दौड़ लगाना और जीत कर आना ।
पिंकी:- (रोते हुए). है,माँ क्या लड़की होना गुनाह है।मैं एक दिन तुम्हरा और पिता जी का नाम करुगा देखना।
स्कूल मैदान में.
पिंकी दौड़ रही थी,लेकिन अचानक पीरियड की वजह से कपड़े पर खून लग जाता है।
पिंकी बहुत खुश होती है।लेकिन साथ ही मायूस थी कि उसके पास ढंग के कपड़े नही है।
घर पर..
रीमा:- (समझती हुईं)..बेटी को तंग करना बंद करो।वो बेचारी कितनी मेहनत पढ़ाई और दौड़ प्रतियोगिता में करती है।उसका हौसला बढ़ने के बजाय उसको गाली देते हो।
मोहन:- (गुस्से से)..देख मेरा दिमाग मत खराब कर।मेरा जो मन करेगा वही करूँगा ।
कुछ देर बाद पिंकी घर पर..
आज मैं दौड़ में पहले स्थान पर आई । और जानती है,मेरा सिलेक्शन "राज्यस्तरी दौड़" में हो गया है। (खुशी में उनके गले लग जाती है।)
रीमा:-क्या बात करती हो पिंकी!
पिंकी:- लेकिन ! (थोड़ा सकोच में)
रीमा:-क्या हुआ पिंकी,कुछ हुआ क्या?
पिंकी:- कपड़े पर खून दिखाती है।
रीमा:-शर्म करो,बेटी की इस हालत पर भी तुम हँस रहे हो ,कैसे बाप हो ?
पिंकी:- कुछ मत बोलो माँ,हमारी किस्मत ही ऐसी है तो क्या कर सकते है।
पहली बार ऐसा था, कि मोहन कुछ नही बोला।बस चुपचाप सुन रहा था।ऐसा दिखा रहा था ,वो कुछ नही सुन रहा है ।
और वो वहाँ से चला जाता है।
पिंकी:- माँ अब 10 दिन बाद फिर राज्य स्तरीय दौड़ होगा,और अगर उसमे मैं जीत गयी तो मैं नेशनल खेल सकती हूँ।
लेकिन माँ मैं कैसे दौड़ में भाग लूँगी?मेरे कपड़े तो फट गए है।और मेरे पास अच्छे कपड़े नही है ।(निराश हो कर बोलती है)
मार्केट में.
मोहन से एक आदमी मिलता है,और एक न्यूज़पेपर दिखता है जिसमे पिंकी की फ़ोटो निकली थी।और लिखा था कि " स्कूल टीम के साथ पिंकी राज्यस्तरीय दौड़ प्रतियोगिता के लिए 6 दिन बाद बनारस रवाना होगी"
राजू:- ऐ मोहन सुन जरा..ये तेरी बेटी है ना?
मोहन:- हाँ! तो..
राजू:- कितना किस्मत वाला है, "तेरी बेटी तेरा नाम रोशन कर रही है।और तू फिर भी बोलता है कि बेटा होता तो कितना अच्छा होता" न्यूज़पेपर उसे ले लेता है।
घर पर..
पिंकी:-माँ, मुझे कल स्कूल में प्रैक्टिस करना है और मुझे पीरियड है, क्या करूँ?
रीमा:- तू चिन्ता क्यो करती है,ये कौन सी बड़ी बात है।मैं तुम्हरे लिए कपड़े का पैड बना देता हूँ।
पिंकी:-लेकिन माँ..कपड़े पर खून लग जाए रहा है,तो कैसे दौड़ में जाऊँगी?
रीमा:-रुक ! और हाथ से कुछ देर में कपड़े का दो,तीन, पैड बना कर देती है।
पिंकी:- माँ का चेहरा देख कर वो समझ गयी कि पैसे की तंगी है।लेकिन फिर भी वो खुशी से ले लेती है।कपड़े भी सिलती है।
स्कूल में...
दौड़ प्रैक्टिस में कपड़े कुछ देर में पूरी तरह से गिला हो गया।जिसकी वजह से कपड़ा खराब हो जाता है।वो वहाँ से तुरन्त रूम में भाग आती है। और खूब रोने लगती है। वो बहना मार के दौड़ में हिस्सा नही लेना चाहती।
लेकिन माँ की हिम्मत को सोच कर वो फिर से तुरन्त दूसरा पैड लगा कर आती है।और फिर से प्रथम आ जाती है।
शाम को..
पिंकी खूब रोती है।और पूरी बात माँ को बोलती है,क्या,कैसे होता है?
रीमा:- बेटी तुम रो मत,मैं हूँ ना तो फिर किस बात की डर।इस बार और अच्छा पैड बना कर दूँगी।पिंकी को बनारस जाने के लिए कपड़े और पेड बना कर देती है।
अगली सुबह..
माँ का पैर छू कर आशीर्वाद लेती है।पिता जी के पास जाती है " पिता जी मैं बेटा तो नही, लेकिन एक बेटी जब आएगी तो आप का नाम कर के आएगी" और स्कूल से बनारस जाती है।
बनारस में..
पिंकी को पीरियड की वजह से पहले तीन दिन दौड़ प्रैक्टिस में पाँचवे, छठवे स्थान पर रहती थी। और बहुत दिक्कत होने लगी । एक ही कपड़े में उसको दौड़ की वजह से और दिक्कत हो रही थी।
खेल का फाइनल दिन.....
आज पिंकी को फाइनल दौड़ना है।लेकिन उसके कपड़ो पर खून के दाग की वजह से और पैड नही होने की वजह से वो रो रही थी।
तभी अचानक उसके रूम में कोई एक पैकेट फेक कर भाग जाता है। जब उस पैकेट को खोलती है, तो देखती है की एक पैड और नए कपड़े थे।
वो चौक जाती है।सोचती है कि कौन दे सकता है?लेकिन अब पिंकी बहुत खुश थी ।
कुछ देर बाद खेल मैदान में..
रेस शुरू होता है। लेकिन इस बार पिंकी पहले कि तरह "पहले स्थान" पर आ जाती है।
घर वापसी..
पिंकी बहुत खुश थी।और उसने अपनी माँ को वो मैडल दिया और बोलती है
पिंकी:- माँ,देखो मेरा मैडल ,कितना अच्छा लग रहा है ना?
रीमा:- हाँ, मैडल तो बहुत अच्छा लग रहा है।और होगा भी क्यो नही इसी के लिए तो बहुत मेहनत की है तुम ने।
लेकिन माँ एक बात नही समझ मे आया ।कि आखिर फाइनल के दिन वो पैकेट कौन देता है मुझे,मैं उस की वजह से ये दौड़ जीत सका।क्यो की उस दिन बहुत ज्यादा खून निकल रहा था।और मैं दौड़ में हिस्सा नही ले पाती।
(खुशी में)
रीमा:- तुम जानना चाहती हो,की कौन था वो ?
पिंकी:- (चौक कर).. हाँ! माँ।
रीमा उसको उसके पिता के पास ले जाती है।मोहन तकिया लगा कर सोया था। उसके तकिये को उठाया तो देखा तो वो चौक गयी।मोहन, उसकी छपी तस्वीर वाली न्यूज़पेपर को रख कर रो रहा था।
पिंकी को समझने में देर नही लगी कि, कौन था?जो वो पैकेट दे कर गया था। वो अपने पिता को लिपट कर रोने लगी।
मोहन भी अपनी बेटी को पहली बार लिपट कर बहुत रोया। और माफी मांगने लगा।
पिंकी जिस दिन तुम्हरा फ़ोटो न्यूज़पेपर में देखा और एक दिन तुम्हरी माँ और तुम्हरी बात सुना तो मुझे बहुत बुरा लगा । उसी दिन से शराब छोड़ दिया ।और हर पल तुम्हरे आस पास ही रह कर तुम्हरी कमी को पूरी करता था।
"गलत था ,बेटा नही बेटी भी घर संसार होती है"
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Tuesday, September 24, 2019

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