संध्या" मेरा यही नाम था शायद ।
शायद इस लिए बोल रही हूँ कि बचपन में माँ और बाबा से ही सुना था । उसका नाम पुछने पर यही जवाब मिला था।
आज संध्या बहुत सालों बाद अपने गाँव जा रही थी, उसकी छोटी बहन की शादी जो हो रही थी। बहुत खुश थी वो क्योंकि बहुत छोटी सी थी जब आखिरी बार देखा था संध्या ने अपनी बहन रूपा को और आज उसी की शादी में इतने सालों बाद बाबा ने याद तो किया, उसे भी लगा मेरा भी परिवार है किसी को मेरी भी ज़रूरत है । अचानक बाबा का फोन आना ! बेटी संध्या कैसी हो? संध्या नाम सुनकर लगा उसका भी कोई नाम तो है , बाबा के मुँह से इतने सालों बाद बेटी सुनना जैसे उसे दुनिया की सारी खुशियाँ मिल गई हो ।
आज संध्या कुछ बोल नहीं पा रही थी। जो लड़की कभी चुप नहीं होती थी बस बोलें जाना, हँसते रहना, सब को अपना समझ लेना, ऐसी थी संध्या और आज बाबा की आवाज सुनकर जैसे उसकी आवाज ही नहीं हो। बाबा का बार-बार पूछना क्या हुआ बेटी ठीक तो है ना तु? अचानक जैसे वो नींद से जागी हो । हाँ बाबा ठीक हूँ मैं। सब ठीक तो है ना ? माँ तो ठीक है ना? हाँ-हाँ सब ठीक तेरी रूपा की शादी हो रही है । बाबा रूपा तो बहुत छोटी है ना ? नहीं संध्या 21 साल की हो गई रूपा। 21 साल ! मतलब मेरी 15 साल बाद याद तो आई मेरे बाबा को अभी सोच ही रही थी कि अचानक; बाबा - बेटी तु तो जानती है कुछ नहीं है मेरे पास बस तेरे ही भरोसे हाँ कर दी हमने।
संध्या को जैसे सब कुछ मिल गया हो बाबा ने बेटी जो बोल दिया था। ठीक है बाबा आप चिन्ता मत करें मैं हूँ, ना सब हो जाएगा । संध्या बोलने ही वाली थी कि माँ से तो बात करवा दे पर उससे पहले ही बाबा का यह बोलना बेटी लगता है बहुत पैसा लग गया बात करते करते, जल्दी ही दोबारा फोन करता हूँ जैसे ही शादी की तारीख पक्की हो जाऐगी, तब तक तुम इंतजाम कर लेना बेटी।
फोन कट चुका था लेकिन जैसे उसे अभी भी उम्मीद थी कि बाबा समझ गए होंगे कि मेरा मन माँ से, रूपा से बात करने का होगा । थोड़ी देर यही सोचकर वहीं खड़ी रही तभी अन्दर से आवाज आती है, आज बातें ही करोगी या धंधा भी? तेरा ग्राहक आया हुआ है, कितनी देर से । ग्राहक का नाम सुनते ही उसे याद आया की उसके परिवार ने तो ठीक 15 साल पहले ही उसे अलग कर दिया था ।
वो सब बातें जैसे कल की हो! उसे आज भी वो दिन याद है छोटे से गाँव की वो लड़की अपनी ही दुनिया में खुश रहने वाली छोटी छोटी बातों से खुश रहना, छोटे छोटे सपने देखना ही उसे पसंद था।
माँ की तो जैसे जान थी। गरीबी में होकर भी उसे एहसास नहीं होने दिया कि वो एक मामूली सी लड़की है। उसकी नज़र में तो एक राजकुमारी है। हर वक्त हँसते रहना, भूख लगने पर भी नहीं लगी है माँ ।
ताकि छोटी बहन रूपा भर पेट खा सके।
संध्या को इस बात से कभी कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उसके कपड़े कहीं-कहीं से सीए हुए हैं बस उसे यह पता था कि माँ-बाबा की लडली बेटी है जो उसे दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। संध्या का पढ़ने का तो बहुत मन होता था लेकिन वो पढ़ नहीं सकती थी क्योंकि उसे अपने घरवालों के साथ उसी गाँव के जमींदार के खेतों में हाथ बटाना होता था लेकिन कभी भी वो उदास नही होती क्योंकि उसके पास एक बहुत प्यारी सखी आराधना थी जो उसे जान से प्यारी थी लेकिन आराधना के घर वाले संध्या को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे क्योंकि संध्या बहुत गरीब परिवार से थी और आराधना एक मध्यवर्गीय परिवार से थी और पढ़ती भी थी आराधना के परिवार वालों को लगता था कि संध्या के साथ रह कर वो भी पढ़ेगी नहीं और सारा दिन आवारा गर्दी करेगी इसलिए बहुत कम समय ही मिलने का मौका मिलता था वो भी कभी कभार संध्या छुप छुपाये उसके घर के पीछे जाकर मिल आती और वो आज क्या पढ़ी कैसा स्कूल बस यही बातें ज्यादा होती संध्या और आराधना की आराधना हमेशा यही पूछती थी कि तुम बड़ी होकर क्या बनों गई और संध्या बस मुस्कुरा यही बोलती अपनी माँ जैसी और आराधना का खूब जोर जोर से हँसते हुए बोलती तु सच में पागल है और आराधना की हँसी पर संध्या भी खूब जोर से हँसती रहती क्योंकि उसके पास कोई जवाब ही नहीं होता था कि गरीब लोगों को कोई हक़ नहीं होता सपने देखने का यह बात उसकी माँ हमेशा बोला करतीं थी संध्या को जब भी वो सवाल करती माँ हमारे पास कब पैसे होंगे ?
संध्या की माँ हमेशा बोलती थी एक दिन तेरे पास सबकुछ होगा जो तु चाहती है और अचानक संध्या का यह बोलना माँ तीनों वक्त का खाना भी क्या संध्या की यह बात सुनकर बस उसे बहुत जोर से गले लगाकर बस रो पड़ती अपनी माँ को रोते देख संध्या बोलती, नहीं चाहिए मुझे खाना माँ, तुम बस रोया मत कर देख ना मुझे तो भूख भी नहीं लगती और जोर जोर से हँसने लगती ।
कृमशः
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Saturday, June 15, 2019

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ReplyDeleteOknisha
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