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Friday, December 15, 2017

Kheme Kiye Ustaad Wahi - Allah Yar Khan Jogi

ख़ेमे किए इसतादह वहीं उठ के किसी ने ।
खोली कमर आराम को हर एक जरी ने ।
रहरासि का दीवान सजाया गुरू जी ने ।
मिलजुल के शरे-शाम भजन गाए सभी ने ।
खाना कई वक्तों से मुयस्सर न था आया ।
इस शाम भी शेरों ने कड़ाका ही उठाया ।

कुछ लेट गए ख़ाक पे ज़ीं-पोश बिछा कर ।
पहरा लगे देने कई तलवार उठा कर ।
गोबिन्द भी शब-बाश हुए ख़ेमा में जा कर ।
देखा तो वहां बैठे हैं गर्दन को झुका कर ।
'वाहगुरू', 'वाहगुरू' है मुंह से निकलता ।
'है तू ही तू! तू ही तू! है मुंह से निकलता ।

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