जब डेढ घड़ी रात गई ज़िक्रे-ख़ुदा में ।
ख़ेमे से निकल आ गए सरकार हवा में ।
कदमों से टहलते थे मगर दिल था दुआ में ।
बोले: ए ख़ुदावन्द ! हूं ख़ुश तेरी रज़ा में ।'
करतार से कहते थे गोया रू-ब-रू हो कर ।
'कल जाऊंगा चमकौर से मैं सुरख़रू हो कर ।'
"मैं तेरा हूं, बच्चे भी मेरे तेरे हैं मौला !
थे तेरे ही, हैं तेरे, रहेंगे तेरे दाता !
जिस हाल में रक्खे तू, वही हाल है अच्छा !
जुज़ शुक्र के आने का ज़बां पर नहीं शिकवा !
लेटे हुए हैं खालसा जी आज ज़मीं पर ।
किस तरह से चैन आए हमें शाहे-नशीं पर !"
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