जिस ख़ित्ते में हम कहते थे आना येह वुही है ।
कल लुट के है जिस जगह से जाना येह वुही है ।
जिस जा पि है बच्चों को कटाना येह वुही है ।
मट्टी कह देती है ठिकाना येह वुही है ।
इक मोर्चे में फिर वहीं सरकार दर आए ।
जा पहुंचे अकाली वहीं सतिगुर जिधर आए ।
जब किलय में उतरी थी सतिगुर की सवारी ।
वाहगुरू की फ़तह दलेरों ने पुकारी ।
वुह हुमहुमा शेरों का वुह आवाज़ थी भारी ।
थर्रा गया चमकौर हुआ ज़लज़ला तारी ।
सक्ते में ख़ुदाई थी तो हैरत में जहां था ।
नारा से हूआ चरख़ भी साकिन येह गुमां था ।
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