ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਸਾਡੀ ਯਾਰੀ ਹੈ ! ਸਾਨੂੰ ਹਿੰਦੀ ਬਹੁਤ ਪਿਆਰੀ ਹੈ ! ਅਸੀਂ ਹਰ ਭਾਸ਼ਾ ਸਤਿਕਾਰੀ ਹੈ ! ਪੰਜਾਬੀ ਨਾਲ ਸਰਦਾਰੀ ਸਾਡੀ ! ਤਾਂ ਪੰਜਾਬੀ ਨਾਲ ਸਰਦਾਰੀ ਹੈ ! (ਅਰਸ਼ੀ ਜੰਡਿਆਲਾ ਗੁਰੂ )

Search This Blog

Friday, December 15, 2017

Dharmik Kavitawan ( Part 1) - Allah Yar Khan Jogi

फ़रमाए : सहर सो के येह हुश्यार न होंगे ।
अब हो के येह फिर नींद से बेदार न होंगे ।
हम होंगे मुसीबत में मगर यार न होंगे ।
येह सिंह प्यारे येह वफ़ादार न होंगे ।
सोए हुए शेरों को गले अपने लगाया ।
सतिगुर ने दलेरों को गले अपने लगाया ।

इन्साफ़ करे जी में ज़माना तो यकीं है ।
कह दे गुरू गोबिन्द का सानी ही नहीं है ।
येह प्यार मुरीदों से येह शफ़कत भी कहीं है ?
भगती में गुरू अर्श है संसार ज़मीं है ।
उल्फ़त के येह जज़्बे नहीं देखे कहीं हमने ।
है देखना इक बात, सुने भी नहीं हमने ।


करतार की सौगन्द है, नानक की कसम है ।
जितनी भी हो गोबिन्द की तार्रीफ़ वुह कम है ।
हरचन्द मेरे हाथ में पुर ज़ोर कलम है ।
सतिगुर के लिखूं, वसफ़, कहां ताबे-रकम है ।
इक आंख से क्या, बुलबुला कुल बहर को देखे !
साहिल को, या मंझधार को, या लहर को देखे !

मद्दाह हूं नानक का, सना-ख़वां हूं तो तेरा ।
पिनहां हूं तो तेरा हूं, नुमायां हूं तो तेरा ।
शादां हूं तो तेरा हूं, परीशां हूं तो तेरा ।
हिन्दू हूं तो तेरा हूं, मुसलमां हूं तो तेरा ।
कुर्बानियां कीं तूने बहुत राहे-हुदा में ।
दर्जा है तेरा ख़ास ही ख़ासाने-ख़ुदा में ।

ऐ सतिगुरू गोबिन्द तू वुह अबर-ए-करम है ।
ए सतिगुरू गोबिन्द तू वुह आली-हमम है ।
सानी तेरा दारा था सकन्दर है न जम है ।
खाता तेरे करमों की फ़रीदूं भी कसम है ।
हातिम का सख़ावत से अगर नाम भुलाया ।
जुरअत से हमें रुसतम-ओ-बहराम भुलाया ।

किस शान का रुतबा तेरा अल्ल्हा-ओ-ग़नी है ।
मसकीन ग़रीबों में दलेरों में जरी है ।
'अंगद' है 'अमरदास' है 'अरजुन' भी तूही है ।
'नानक' से ले ता 'तेग़ बहादुर' तू सभी है ।
तीर्थ नहीं कोई रूए रौशन के बराबर ।
दर्शन तेरे दस गुरूयों के दर्शन के बराबर ।


किस सबर से हर एक कड़ी तू ने उठाई ।
किस शुक्र से हर चोट कलेजे पि है खाई ।
वालिद को कटाया, कभी औलाद कटाई ।
की फ़कर में, फ़ाके में, हज़ारों से लड़ाई ।
हिम्मत से तिरी सब थे सलातीन लरज़ते ।
जुरअत से तिरी लोग थे ता चीन लरज़ते ।

आद्दा ने कभी तुझ को संभलने न दिया था ।
आराम से पहलू को बदलने न दिया था ।
गुलशन को तेरे फूलने फलने न दिया था ।
कांटा दिले-पुर-ख़ूं से निकलने न दिया था ।
जिस रन में लड़ा बे-सर-ओ-सामान लड़ा तू ।
सौ सिंह लिए लाखों पि जा जा के पड़ा तू ।

ज़क दी कभी नव्वाब को राजों को भगाया ।
मैदां में मुकाबिल जो हुआ मार गिराया ।
घमसान में जब आन के तेग़ों को फिराया ।
फिर कर दिया इक आन में लश्कर का सफाया ।
कल कहते हैं चमकौर में फिर खेत पड़ेगा ।
गोबिन्द सहर होते ही लाखों से लड़ेगा ।

बाकी थी घड़ी रात गुरू ख़ेमे में आए ।
शाहज़ादे यहां दोनों ही सोते हुए पाए ।
दोनों के रुख़-ए-पाक से गेसू जो हटाए ।
अफ़लाक ने शर्मा के मह-ओ-मेहर छुपाए ।
सतिगुर ने दहन जब दहन-ए-पाक पि रक्खा ।
कुमला के हर इक फूल ने सर ख़ाक पि रक्खा ।

मरघट की तरह इस घड़ी सुनसान ज़मीं थी ।
ख़ामोशी सी छाई हुई ता अर्श-ए-बरीं थी ।
वीरानी थी ऐसी न उदासी येह कहीं थी ।
आफ़त थी, बला थी, येह कोई रात नहीं थी ।
दुनिया पे था छाया हुआ इस तरह अंधेरा ।
लुक्क गेंद पि मट्टी की जिस तरह हो फेरा ।

तारे भी चमकते थे मगर रात थी काली ।
घट घट के हुआ माहे-दो-हफ़्ता था हलाली ।
अंगुशत दहन में थी फ़लक ने गोया डाली ।
अफसोस में सतिगुर के येह सूरत थी बना ली ।
हसरत से सभी कलग़ियों वाले को थे तकते ।
आंखों में सितारों के भी आंसू थे झलकते ।

सोए हुए बच्चों को कहा सर को पकड़ कर ।
चल दोगे अब्बा को मुसीबत में जकड़ कर ।
थी ज़िन्दगी लिखी हुई किस्मत में उजड़ कर ।
फिर मिलने का वादा तो किए जायो बिछड़ कर ।
थे चार, हो अब दो ही, सहर येह भी न होंगे ।
हम सबर करेंगे जु अगर येह भी न होंगे ।

फ़रमाते थे : "कल दोनों ही परवान चढ़ोगे !
दुख भोगेंगे हम, ख़ुलद में तुम चैन करोगे !
होते ही सहर दाग़-ए-जुदाई हमें दोगे !
सपने में ख़बर आ के कभी बाप की लोगे !
ऐ प्यारे अजीत ! ऐ मेरे जुझार प्यारे ।
हम कहते हैं कुछ, सुनते हो दिलदार प्यारे ।
(ख़ुलद=स्वर्ग)

No comments:

Post a Comment