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Sunday, May 22, 2022

तुम जवां भी नहीं हो मगर कमसिन भी नहीं - Pramod Kumar

 तुम जवां भी नहीं हो मगर कमसिन भी नहीं।

दूर रहना तुमसे अब मुमकिन भी नहीं।।

होती होंगी तकरारे मुहब्बत मीठी लेकिन।

इश्क़ से बढ़कर कोई शह नमकीन भी नहीं।।


लोग कहते है कि इश्क़ आसान नहीं होता।

मैं कहता हूं इससे आसान कुछ भी नहीं।।

हसरते दिल और बस आंखों की कशिश।

इससे ज़रूरी इसमें कुछ सामान नहीं।।


इश्क़ सहराओं में गूंजती कोई आवाज़ है।

इश्क़ दरियाओं में बजता हुआ कोई साज है।।

इश्क़ आसमान से टूटा हुआ तारा है कोई।

इश्क़ बारिश में बरसती हुई कोई आग है।।


कैस के जिस्म में दौड़ती हुई नब्ज़ है इश्क़।

लैला की ज़ुबान से निकला लफ़्ज़ है इश्क।।

सिरी से फरहाद के मिलने की आस है इश्क।

कच्चे मटके में सोहनी का पक्का विश्वास है इश्क।।


इश्क़ बेघर सही पर थोड़ा सा हर दिल में है।

इश्क़ तन्हा सही फिर भी हर महफिल में है।।

इश्क़ जिसने किया उसने तो इसे जाना है।

और जिसने न किया उसने भी इसे माना है।।


मुझको पता चला ये इन्हीं लम्हात के बाद।

इश्क़ है क्या बला तुझे मुलाकात के बाद।।

दिल के किसी कोने में कुछ कसक सी है।

लगता है ये चुभन कुछ और नहीं इश्क़ ही है।।

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