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Sunday, May 22, 2022

उत्पन्न कैसी बिमारी है - राकेश चौरसिया




 एक प्रश्नचिंह खड़ा किया तू,

जीने का ढंग तलाश रहा युग,

आज विश्व पर पड़ता भारी है,

ये विनाशकारी महामारी है।


उत्पन्न कैसी बिमारी है?


मन में भय, संशय पल रहें,

आपस की दूरी खल रहें,

प्रताड़ित करते तन-मन को,

जन-जन की लाचारी है।

बना महामारी संकट का साया,

सन्नाटा गाँव,शहर में छाया,

ऐसे परिवेश में जीवन की,

अवधारणा भी अधूरी है।

ये कैसी मजबूरी है?

उत्पन्न कैसी बिमारी है।।

वर्षा (एक काव्य संग्रह)से/ राकेश चौरसिया


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