तुझसे लगन जो लगी है किसी से भी लगती नहीं है
मुहब्बत कभी जिंदगी में अपनों को ठगती नहीं है
कोई बात तुझमे अनोखी मुझ को नजर आए हर पल
मेरे मन में तेरे अलावा कोई प्यास जगती नहीं है
मेरे मन में अरमां छुपे हैं मुहब्बत का मैं हूं पुजारी
लकड़ी सूखे शजर की जल के सुलगती नहीं है
भले कोई दिल लाख तोड़े जीने को मुश्किल बनाए
मगर कोई बन्दुक अपने सनम पे हरगिज दगती नहीं है
साहस की मुझमे जमाने कोई कमी ना मिलेगी
सीमा शराफत की मधुकर लेकिन उलगती नहीं है
शिशिर मधुकर
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