बिका हूँ रोज़ महब्बत में मैं खुदा की तरह…
मगर करीब नहीं था कभी दुआ की तरह…
नहीं है आग मगर जल रही है जान मेरी….
जिगर में याद तेरी अनबुझी जफ़ा की तरह…
सवाल करता रहा ज़हन वाईसों जैसे….
रहा ये मौन गुनहगार दिल सदा की तरह…
कभी मिलेगा नहीं जो चला जहां से गया…
लिपट के आएगा साँसों में वो हवा की तरह….
समझ का दोष के इनआम ये वफ़ा ‘चन्दर’…
जो कल था सांस मेरी आज है क़ज़ा की तरह….
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/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)
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