मुझसे ऐ जान-ए-जानाँ क्या हो गई ख़ता है
जो यक ब यक ही मुझसे तू हो गया ख़फ़ा है
टूटी हुई हैं शाख़ें मुरझा गई हैं कलियाँ
तेरे बग़ैर दिल का गुलशन उजड़ गया है
आंखें हैं सुर्ख़ रुख़ पर ज़ुल्फें बिखर रही हैं
हिज्रे सनम में शब भर क्या जागता रहा है
तुमने तमाम खुशियाँ औरों के नाम कर दीं
तेरी इसी अदा ने दीवाना कर दिया है
फाँसी की सज़ा देकर ख़्वाहिश वो पूछते हैं
अब क्या उन्हें बताएं क्या आख़िरी ‘रज़ा’ है
No comments:
Post a Comment