मेरे घर में सुबह के समय पापा टीवी में प्रवचन चला देते है बोलते है "सुनो इन्हे",
माँ बोलती है "ये क्या बोलने वाले है हमे सब पता है",
पापा बोलते है, "हाँ, पता तो सबको है लेकिन फिर भी ये प्रवचन देने वाले वही बाते बोल बोल कर कमाये जा रहे है, लोग सुनने भी आते है, फिर भी कोई सुधरता क्यों नही ? चलो शुरुवात घर से, आप ही से कर लेते है" .... और माँ चिढ़ जाती है. सही बोले पापा.... जानते हम सब सही- गलत है, लेकिन उस सही- गलत को ज़िन्दगी में उतारना कितना मुश्किल है.
आज कल ज़माना काफी तेज राह पर है, लड़कियों के लिए बहुत से नियम- कानून बनाये जा चुके है, बहुत ही समर्थन मिल गया है लड़कियों की पढ़ाई, जॉब आदि- इत्यादि के लिए.... लड़के- लडकियां कंधे मिला कर काम कर पा रहे है, इज़्ज़त बना रहे है, इस हिसाब से तो हमारा समाज काफी उन्नत ही माना जाना चाहिए. आइये मैं आपको इस काफी उन्नत समाज का एक चेहरा दिखाना चाहूंगी, वो चेहरा जो आप हर महीने अख़बार के जरिये, टीवी समाचारो के जरिये, यहाँ तक की अपने आस- पास ही कैसे ना कैसे देख ही लेते है, बुरा लगता है, काफी गुस्सा आता है, लेकिन क्या है ना हम काफी व्यस्त है अपनी ज़िन्दगी, ऑफिस में, तो भूल जाते है... और याद कब आता है जब वही दुर्घटना वापस होती है, हम फिर गुस्सा होते है, बुरा लगता है, फिर भूल जाते है.
विवाह क्या है देखिये "जब बहुत से रिश्तेदार जानकार आ कर आपको सर्टिफिकेट दे जाये की जी अब से आप एक- दूसरे के साथ कुछ भी करो, हम सब सही मानेंगे".... इसमे अब आपका बस परिवार बनाना ही नही आया, मार-पीट, लड़ाई-झगडे, बलात्कार, हत्या सब आ गया है, एक औरत जिसका वैवाहिक बलात्कार हो रहा हो, वो कभी बोल ही नही पाती है की मेरे साथ ये गलत हो रहा है, क्योंकि कोई मानेगा ही नही की वैवाहिक बलात्कार नाम का भी कुछ होता है.
अब क्या है ना की समाज के नियमो के अनुसार बलात्कार के भी "प्रकार" होते है. देखिये कैसे
1. यदि अकेले में हुआ है, लोगो को बाद में पता लगा है, जो शिकार हुआ उसका हाल बुरा है तो "ये बलात्कार गलत है".
2. यदि अकेले में हुआ और जिसका हुआ उसने होने के बाद बताया तो "क्या पता असलियत क्या है"
3. यदि बलात्कार के बाद कपडे छोटे पाए गए तो "अरे, ये जबरदस्ती है या बुलावा था ?"
4. यदि देर रात में हुआ तो "किसे पता क्या बात है ? इतना ही बलात्कार का डर था तो इतनी रात बाहर क्यों थे ? अजी आज कल सच कोई नही जानता"
ऐसे ही बहुत प्रकार होते है. ...
(शारीरिक बलात्कार होने के बाद ये मानसिक बलात्कार पूरा समाज मिल कर करता है)
इन सब से बाहर बिना बलात्कार की दुनिया में आइये... कभी साथ की लड़कियों से पूछिए क्या कभी उनके साथ कुछ गलत हुआ है, हर कोई कहेगी "हाँ", किसी ना किसी तरीके से हर किसी ने झेला होता है, ये अजीब सा और ना बर्दाश्त होने वाला रवैया. एक लड़की को जो रात में किसी कारण से लेट घर लौट रही है, और किसी ने उसे शरीर पर छेड़ दिया, वो घर आ कर बता नही सकती है की क्या हुआ असल में उसके साथ, मुझे पूछना पड़ता है "अरे बता ना क्या हुआ... मुझे तो बता सकती है मैं तो लड़की हूँ"... क्यों नही बता सकती वो ? शर्म क्यों आयी ? लड़की ने तो कुछ गलत नही की, क्या उसकी इज़्ज़त कम हो गयी ? मेरी नज़र में तो नहीं हुई, उसने जो इज़्ज़त अपने आप बनायीं वो इज़्ज़त किसी और के स्पर्श से तो नही जा सकती ना. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा लोग बोलेंगे, लेकिन आप जानती है कोई भी आपके सामने नही बोल सकता. सब पीछे से बोलेंगे, कुछ पीठ पीछे से, और आज के दौर में इन्टरनेट के जरिये अपने कंप्यूटर्स के पीछे से..... तो ...... बोलने दो ना, ये सब आपके बारे में बोल ही सकते है क्योंकि आप इनकी कुछ नही लगती, ये आप जानती हो ना.
ये आपके जॉब करने पर सवाल देंगे, आपके कपड़ो पर, आपके बात करने पर, दोस्तों पर.... लेकिन बस पीछे से, सामने नही आ सकते .... क्योंकि ये भी जानते है, की दरअसल जॉब, कपडे तो कारण है ही नही बलात्कार का, अगर ऐसा होता तो किसी 5- साल की बच्ची के साथ ऐसा ना होता या किसी बुरखे में बंद औरत के साथ ऐसा ना होता या किसी 70- साल की बूढी औरत के साथ ऐसा ना होता.
ये सब तो कोई नग्नता या उम्र या लैंगिगकता की बाते नही थी, फिर भी बलात्कार हुआ था ना. ... इनकी गलती थी ? अब सब कहेंगे "नहीं, इनकी गलती नही थी", तो मानिये भी इस बात को... क्यों याद दिलाना पड़ता है की बलात्कार के प्रकार नही होते, ये सिर्फ गलत होता है.
कुछ सवाल है मेरे, कोई जवाब जरूर दे. ..
1. कोई लड़की जब घर आ कर छेड़खानी की शिकायत करती है तो उसकी माँ उसे रास्ता बदल लेने की सलाह देती है, क्यों लेकिन .. क्यों माँ नहीं सिखाती अपनी बेटी को मजबूत बनना जैसे अपने बेटे को बनाती है ??
2. क्यों बेटी को ही दोस्तों के साथ घूमने जाने से मनाही होती है, बेटा तो कहीं भी जा सकता है ??
3. आज भी शादी के लिए लड़की अपना फैसला नहीं दे सकती है. .. क्यों ? सिर्फ लड़का ही फैसला क्यों देता है ? शादी तो दोनों की हो रही है ना.
4. जब दो- लोग घर से भाग जाते है तो क्यों कहा जाता है फलाने की लड़की इज़्ज़त खराब कर भाग गयी ???? लड़के के लिए तो कोई ऐसा नहीं बोलता. ... लड़के की बात आते ही, "जमाना बदल गया है, बच्चे खुद की मर्जी से साथी बनाते है, इनकी ख़ुशी में ही माँ- बाप की ख़ुशी है", अचानक से इज़्ज़त वाला विषय ही गुम जाता है.
बचपन से लड़की को सिखाया जाता है "ये मत करो, वो मत करो, ऐसे मत पहनो, ऐसे मत बैठो, वहां मत जाओ", लड़कियों के हिस्से आता है घर की इज़्ज़त बनना और लड़के होते है इज़्ज़त के रखवाले. लड़को को मिलती है आज़ादी.... सब कुछ की आज़ादी..... ये सब कुछ की आज़ादी शायद वो बलात्कार करने वाले को अपना अधिकार लगा था इसलिए उसने अपने अधिकार का इस्तेमाल कर लिया... अब क्यों कह रहे आप उसे गलत ??? लड़की रात को बाहर कैसे हो सकती है ? ये तो बस लड़को का हक़ है, इसलिए ही तो "निर्भया" का बलात्कार हुआ था ना ? देखिये अब जिन्हें पावर दी है वो तो इस्तेमाल भी करेंगे. आप लड़की को घर में बंद रखिये क्योंकि आपको उसकी रक्षा करनी है......
एक लड़के ने प्यार के नाम पर किसी लड़की का शारीरिक शोषण किया. लड़की इस बात की शिकायत ले कर लड़के के घर जाती है. वहां उसे उसके माँ- पिता मिलते है. लड़की उन्हें बताती है आपके लड़के ने मेरे साथ गलत किया. उसे देख कर लड़के के घर वाले साफ़ साफ़ माना कर देते है अपने बेटे की गलती मानने से. कुछ समय बाद लड़के की माँ कहती है "ठीक है बेटा, माना की आपके साथ कुछ गलत हुआ, मगर अब जो होना था वो हो चुका, अब आप सब भूल जाइये और ज़िंदगी में आगे बढिये. जवानी है, ऐसे में गलतियां तो हो ही जाती है, आप भी तो उसके साथ शामिल थे. अब शिकायत किस बात की." .. लड़की वहां से वापस आ जाती है ये सोच कर की "मैं किसे सजा दिलाने चली थी, दरअसल लड़के की गलती थी ही नहीं, उसने तो वही किया जो उसने सीखा है. हाँ, मैं शामिल थी उस दैहिक रिश्ते में, मेरा बलात्कार नहीं हुआ, मगर वो रिश्ता मैंने विश्वास के तौर पर बनाया था.मैं तो प्यार में थी, मगर सामने वाले ने प्यार के नाम पर सिर्फ देह से खेलना था. काश वो समझता की लड़की के लिए उसका शरीर ही उसकी इज़्ज़त है, और ये खेलने की चीज़ नहीं है." अगर एक औरत ही दूसरी औरत की इज़्ज़त की परवाह नहीं कर सकती तो किसी पुरुष से इसकी अपेक्षा करना कुछ मुश्किल हो जाता है. (खैर अब तो प्यार के नाम पर खेल खुद लड़कियों ने ही शुरू कर दिया है, दैहिक मूल्य गिर गए है शायद)*
चलिए अब बताइये " क्या मैं कुछ गलत बोल रही हूँ ? अगर मैंने गलत बोला तो आप इसे सही कर दीजिये..... यहाँ जो बोलना चाहती हूँ वो तो आप सब पहले से ही जानते है तो सही को अपनाने की थोड़ी मेहनत ही कर लीजिये. अपने ही घर से, अपने ही घर के बच्चो से ???? बस उन्हें सही-गलत ही तो बताना है, लड़की के कपडे, उसकी सोच, उसका चेहरा बलात्कार का कारण नही था बल्कि लड़के की सोच गलत थी, और सोच सीधा संस्कारो से जुडी होती है. लड़के को अगर अधिकार ही ना दिया जाता की वो लड़की की इज़्ज़त ना करे तो वो बलात्कार भी ना करता. लड़की को सीखा दीजिये की गलत के खिलाफ बोल दे, इग्नोर ना करे, अगर उसने यूँ ही जाने दिया तो लड़का इसे अपना अधिकार समझ लेगा, मत दो किसी को भी अधिकार की आपकी या आप जैसे किसी भी लड़की की तरफ गलत नज़र से भी देख सके.
और ये समाज के नाम के पीछे रहना भी बंद कीजिये, ये समाज बाहर नहीं है अपितु आप हम से ही बना है, आप- हम ही समाज है. जरुरत समाज को बदलने की है इस बात का सीधा मतलब हमे बदलने की है. अपने बेटे-भाई को इज़्ज़त का रखवाला नहीं बस इज़्ज़त करना सिखाइये. अपनी बहन- बेटी को डरना, चुप रहना नहीं बस खुद की कीमत बनाना सिखाइये.
मैं अपने पुरुष पाठको से माफ़ी चाहूंगी क्युकी यहाँ मैंने लड़का/ लड़की लिख और बलात्कार के नज़रिये में लड़के का सिर्फ बुरा चेहरा दिखाया है. मैंने ये लेख एक लड़की के हिसाब से लिखा है, अपने आस- पास होने वाले घटना, या कभी तो अपनी ही किसी साथ वाली लड़की/ सहेली जिसे सुन कर कई बार ये भी नहीं समझ पाती हूँ की अब लड़की आत्मा को क्या समझाऊँ ? जबकि उसकी बात सुन कर खुद मेरी ही आँखों में पानी आ गया है. मगर "exceptional are always there". दरअसल मैं यहाँ समाज की बात करना चाहती हूँ, समाज आदमी- औरत दोनों से बनता है, जहाँ सही है वहां दोनों सही है, और जहाँ गलत है वहां दोनों गलत है. मैं किसी एक के कंधे पर इसे नहीं रख रही हूँ.
आखिर में कहूँगी की यदि चिंता/गुस्सा/बुरा लगता है तो इसे बदलिए. मैं क्यों बोलूं ? मेरी क्या लगती है ? किसी और का मामला है, ये सब कर के खुद को पीछे मत करिये. आप चाहे पुरुष हो या औरत, बलात्कार पर सहमती मत दीजिये.
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Tuesday, September 24, 2019

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