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Thursday, August 8, 2019

हाइवे वाला भूत - अनुरोध श्रीवास्तव

यह किस्सा लगभग उन्नीस वर्ष पुराना है , वही मेरी नयी-नयी नौकरी लगी थी । मेरा घर हाइवे से लगभग सात सौ मीटर की दूरी पर है । हुआ यूँ कि उस समय हाइवे का चौड़ीकरण होकर दो लेन से चार लेन बनाया जा रहा था । सड़क किनारे लगे पुरानें वृक्षों के कट जानें और सड़क के खुद जानें के कारण बाहर से बस द्वारा यात्रा करनें पर बस के अन्दर से गाँव के चौराहे को पहचानना मुस्किल था , सभी लैण्डमार्क मिट गये थे ।
मैं सप्ताहांत की छुट्टी पर घर को वापस आ रहा था , रात को दस बज चुके थे । दिसम्बर का महीना और कुहरा जोर का पड़ रहा था , आँख को हाथ तक नहीं सूझता था । मैनें अपनें गाँव के चौराहे का अन्दाजा लगाकर बस रुकवाया । उतरनें पर मालूम हुआ कि बस मेरे चौराहे से लगभग सात-आठ सौ मीटर आगे निकलकर रुकी है , लिहाजा मैं पैदल घर की दूरी तय करनें लगा । अभी बमुश्किल चार सौ मीटर चला हूँगा कि मेरा पैर अजीब सी ठंढ़ी चीज से टकराया , मैं गिरते-गिरते बचा । नजर जमाकर जब मैनें नीचे देखा तो मेरे होश फाख्ता हो गये । मेरा पैर जिस चीज से टकराया वह धड़ से ऊपर नंगी लाश थी जिसका सर गायब था । मैं डरकर भागा और रोते-रोते बहुत ही मुश्किल से घर पहुँचा । घर पहुँचकर मैं बस रोये ही जा रहा था । घरवाले मुझसे रोनें का कारण पूँछ रहे थे लेकिन में बस रोये ही जा रहा था । मेरे रोनें से ठंढ़क की उस रात में भी गाँव के अगल-बगल के लोग इकट्ठा हो गये । किसी नें कहा चाय पिलाकर संयत होनें दो तब कुछ पूछों । चाय पीकर और अपनें अगल-बगल इतनें स्वजनों को देखकर मैनें सारी बात एवं ड़र का कारण बताया । सभी नें एक स्वर में कहा जरुर हाइवे का भूत होगा जिसनें डराया है ।
खैर मैं संयत होकर सोनें चला गया सुबह जब अखबार आया तो तीसरे पृष्ठ (स्थानीय) की हेड़लाइन थी "हाइवे के किनारे सर कटी लाश बरामद हुई " ।
©अनुरोध श्रीवास्तव

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