उदासीनता किस कदर पाली है जैसे कोई लाड़ली बेटी पाल रही हो, मुझे ऐसा चेहरा एकदम नही पसंद,,बनठन के रहा करो,,आकाश ने उर्मी से मुंह बिचकाकर कहा ।
-पड़ोस वाली ज्योति भाभी को जरा देखो,, किसी हेरोइन से कम नही लगती,,आकाश ने एक और वार किया और कमरे से बाहर निकल गया ।
उर्मी सब समझ रही थी, पर बोली कुछ नही । मन ही मन वह काफी कुछ बुदबुदायी--" ज्योति भाभी की बात करते हैं, उनके पति मनोज जी की नही कहेंगे कि वह कितने सुख से उन्हें रखते हैं । घर से लेकर बाहर तक की कई जिम्मेदारियां वो अपने सिर लिये हुये है । और तो और ज्योति भाभी के नाज-नखरों को भी मुस्कुरा कर उठाते हैं,,आपकी तरह नही कि जब देखो तब हर एक चीज के लिए मुझे जिम्मेदार बना देते हैं।"
सहसा उर्मी आईने के सामने खड़ी होकर खुद को देखने लगी फिर एक गहन सोच में डूब गई । यही वह चेहरा था, जिस पर कभी आकाश अपनी जान छिड़कता था । शादी के कुछ साल बाद घर-परिवार और दो बच्चों की जिम्मेदारी के कारण उर्मी ने खुद पर ध्यान देना ही बंद कर दिया । आदमी की जात को घर की बीवी कब सुहाती है । उसे तो रोज एक नया चेहरा आकर्षित करता है । उर्मी खूबसूरत थी, पढ़ी-लिखी थी और शादी से पहले जाॅब भी करती थी । खूबसूरत तो वह अभी भी थी, बस उसे बनाव-श्रृंगार का समय नही मिलता था । और आकाश के स्वभाव को देखकर कहा जाये तो अब उर्मी रूपी मशीन उसके लिए पुरानी हो गयी थी ।
स्त्री जब पहली बार ससुराल में आती है तो पहले वहां के रीति रिवाजों में खुद को ढालती है । उसी दौरान उसे घर की छोटी-बड़ी जिम्मेदारियों से रूबरू होना पड़ता है, मगर यहाँ तो उर्मी के आते ही आकाश जैसे पंगु हो गया था । अपनी किराना दुकान की पांच घन्टे की ड्यूटी भी उसे पर्वत की तरह भारी लगती थी । उसके बरताव से लगता था जैसे दुकान जाकर वह उर्मी पर एहसान कर रहा था । मन ही मन लड्डू फोड़ना, ख्याली घोड़े दौड़ाना और बाहर घूमना,,बस इन्हीं कामों में उसका मन लगता था । उर्मी को तो अपने बूढ़े सास-ससुर और बीमार देवर की तीमारदारी का काम और अपने दोनों बच्चों की देखभाल भी करनी पड़ती थी ।
देवर का नाम विकास था, पर उसका कभी मानसिक विकास ही नही हुआ,, हां शारीरिक रूप से वह काफी विकसित हो गया था । वह आकाश से मात्र दो साल छोटा था, मतलब 26 साल का,,,पर एक साल के बच्चे जैसा, जो न बोल सकता था और न चल सकता था । उसे जाने कौन सी मानसिक बीमारी थी, जिसका डायग्नोसिस बड़े-बड़े मनोचिकित्सक भी नही कर पाये थे । खैर, विकास की जिन्दगी तो घर वालों पर आश्रित थी । दरअसल खुद उसके लिये भी उसकी जिन्दगी एक बोझ सरीखी थी । तो उससे किसी को कोई उम्मीद भी नही थी, पर आकाश तो दिल- दिमाग और शरीर से स्वस्थ था तो उससे सबकी उम्मीदें बनना स्वाभाविक ही था । आकाश ने कभी किसी काम को मन से नही किया, जितना उससे कहा जाता उतना भी वह गुस्सा दिखा दिखा कर करता या तो अधूरा ही छोड़ देता था । दुकान से हमेशा जाने कहाँ गायब हो जाता था । पिता वन-विभाग में एक अच्छी पोस्ट पर थे इसलिए घर में कभी किसी चीज की कमी नही रही थी । उनकी सेवानिवृत्ति के बाद सिर्फ पैंशन से घर चलना मुश्किल था । इसलिये उन्होंने एक किराना दुकान कर दी, जिसे आकाश बमुश्किल चला रहा था । आकाश के इस गैरजिम्मेदारी पन से आजीज आ चुके बूढ़े मां-बाप की नजर में उर्मी ही एक जिम्मेदार बेटा बन गयी थी । वह भी एक प्रबुद्ध महिला की तरह घर के लिये अपना यौवन, अपना सम्पूर्ण जीवन होम करती चली गयी । उसे अब पता चल रहा था कि अच्छा होना, दायित्व पालन और त्याग करने के बाद का फल कितना तीक्ष्ण होता है ।
एक दिन दोपहर को सब कामों से खाली होकर उर्मी आकाश की अलमारी ठीक करने गई तो उसे वहाँ किसी लड़की का लव लेटर रखा मिला । उसने वह लेटर पढ़ा तो सन्न रह गयी । चूंकि उर्मी साफ दिल वाली थी सो वह सबको अपनी तरह ही साफ दिल समझती थी । उसने कभी आकाश से इस तरह की उम्मीद नही की थी । लेटर से साफ जाहिर था कि आकाश के उस लड़की से अवैध सम्बन्ध है । उसके मन में ऐसे निराशाजनक, अविश्वास पूर्ण, दुःखद भाव आने लगे कि अलमारी साफ करने का काम उसने बेगार सा टाल दिया । माना वह आकाश की कटु बातों को भी शर्बत की तरह पी जाती थी, मगर यह जहर वह नही पी सकती थी ।
इसके बावजूद भी उसने एक और समझदारी दिखाने चाही कि वह बैठकर आकाश से इस बारे में बात करेगी। शायद वह सुधर जाये । उर्मी जानती थी कि आकाश जिस रास्ते पर चल रहा था, वहां से वह सीधे पतन को प्राप्त होगा, क्योंकि जिस इन्सान की तृष्णा नही मिटती हो वह सौ-सौ कोस तक मारा भटकता फिरता रहता है, फिर भी वह अपने मन का नही पाता जबकि संतोषी जीव मुंह में आई दौलत को भी बेकार समझता है और इसके बावजूद भी खुश रहता है । उर्मी चिन्ता के भंवर में धंसती जा रही थी आकाश के इस कृत्य से बच्चों का भविष्य क्या होगा ?। अब तक वह संतोष का अमृत पीकर तृप्त थी और उसका मन भी शांत रहता था, पर इस घटना से वह पूरी तरह से टूट रही थी।
--"मुझे आपसे बात करनी है एक मिनट कमरे में चलिये,,उर्मी ने आकाश के घर में आते ही कहा।
-"कहो, ऐसी कौन सी प्राइवेट बात करनी है,,, आकाश ने बेरूखी से कहा।
उर्मी ने वह लेटर उसके हाथ में थमा दिया।
-" हाँ, तो क्या कहना है तुमको ,,,? आकाश ने लेटर देखने के बाद ढिठाई से कहा।
-"हमारे दो छोटे बच्चे है, ये सब आप सही नही कर रहे, उर्मी ने लगभग रोने वाली स्थिति में कहा
-"बच्चे हैं तो क्या करूँ,,,ये जो हो रहा है ये यूँ ही जारी रहेगा, तुम यह सब नही रोक सकती समझी,,,आकाश ने अपना अंतिम निर्णय ही जैसे सामने रख दिया।
--"एक म्यान में दो तलवारें नही रह सकती आकाश,,,या तो मैं या फिर वो,,,,उर्मी का लहजा भी निर्णयात्मक हो गया ।
कहते हैं दुश्मन के किले को तोड़-फोड़ कर और रास्ते की बाधाओं को दूर करते हुये अपने शत्रुओं को मारना चाहिए और उन्हें निरन्तर कष्ट देते रहना चाहिए ठीक इसी विचारधारा से भरा आकाश उर्मी के चेहरे को एकटक देख रहा था । उसे लग रहा था जैसे इस विग्रह में उर्मी की जीत होगी और वह हार जायेगा । उसने सोचा था, जिस दिन उर्मी को उसके अफेयर का पता चलेगा तब वह उसके सामने हाथ जोड़ेगी, गिड़गिड़ायेगी, दुहाई देगी और फिर उसके बाद हमेशा के लिये चुप हो जायेगी । जायेगी कहाँ ? लोक लाज, अपने पिता की इज्जत, बच्चों का भविष्य इन सब कारणों के कारण उसे मेरे ही तलवे चाटने होंगे । मगर उर्मी तो आर या पार का ही साहस दिखा रही थी । इससे आकाश की घिग्घी सी बंध गई थी ।
-" चुप क्यों हो ? बोलो न कौन चाहिए तुम्हें ?
स्त्री की जीत पर दुष्ट आदमी जरूर बौखलाता है । और इसी बौखलाहट में आकाश ने कहा--" अपना मुंह बन्द करके चुपचाप यहाँ रहो वरना जाओ अपने मायके,,जब दिमाग सही हो जाये तब आ जाना, मैं तुमसे बदा नही हूँ।
-"ठीक है,,,उर्मी ने इतना ही कहा और छत पर चली गयी।
दूसरे दिन सुबह की नौ बजे आकाश की नींद खुली । उसके बेड के पास चाय का प्याला नही था, न कमरा साफ-सुथरा था । खिड़कियों के परदे बेतरतीब लटक रहे थे । न छौंकन की खुशबू थी और न कूकर की सीटी,,,न बच्चों की चील पौं,,,
वह दौड़कर नीचे आया तो देखा विकास मूत्र से सना कराह रहा था, पूरे कमरे में दुर्गंध भरी थी,,उसके पिता बैचेन से अखबार खोज रहे थे और उसकी लाचार अंधी माँ श्राप देते हुये गरिया रही थी--"एक ही तो थी लक्ष्मी, जो हमारे कुल को तारने आई थी, पर उसे भी पापी ने भगा दिया । ऐसे अधम को कभी कोई सुख नही मिलेगा, तिल-तिल मरेगा,,ये मेरा श्राप है ।"
आकाश तिलमिलाता हुआ घर से बाहर चला गया । शाम को जब लौटा तो घर एकदम खाली था । टेबल पर एक लैटर रखा था जिसे आकाश ने पढ़ना शुरू किया ।
मैं अपने माता-पिता जैसे सास-ससुर, भाई जैसे देवर को और अपने मासूम बच्चोें को लेकर जा रही हूँ, क्योंकि इनको मेरी जरूरत है और जिसे मेरी जरूरत नही है उसके लिये यह डिवोर्स पेपर छोड़ कर जा रही हूँ ।
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Thursday, July 11, 2019

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