गर्मी का महीना और खड़ी दुपहरिया।
घुमक्कड़ बिरजू रामपुर का मेला घोड़े पे सवार होके देखने जा रहा था। सफेद घोड़ा हाल ही में उसने खरीदा था।
नया नया शौक घोड़े से घूमने का और रामपुर के मेले की ख्याति, बस गर्मी और धूप की परवाह किये बिना निकल पड़ा घुमंतू।
काफी देर चलने और तेज धूप के कारण उसका तथा उसके घोड़े का बुरा हाल था।
बेचारा घोड़ा करे भी तो क्या, रह-रह कर अपने मालिक को कहीं पेड़ की छांव में खड़े होने पर चाटकर अपना प्यार दर्शा देता था।
बिरजू भाई को भी लगता था कि घोड़ा भी उसकी तरह प्यासा होगा पर आस-पास में न कोई कुआँ दिखता था और ना ही तालाब आदि।
बिरजू भाई रह-रहकर गमछे से अपने पसीने को पोंछ लेते थे और घोड़े की पीठ पर हाथ फेरते हुए धीमी चाल से पगडंडी पर चल रहे थे।
कुछ दूरी पर उन्हें एक बगीचा दिखा। उनके मन में आया कि इस बगीचे में चलते हैं, थोड़ा सुस्ता भी लेंगे और अगर वहाँ कोई गढ़ही, तालाब हुआ तो इस अनबोलते को भी मेरे साथ पानी मिल जायेगा।
अब बिरजू भाई घोड़े की चाल थोड़ा तेज कर दिए और बगीचे की ओर बढ़ने लगे।
बगीचे की हालत बहोत बुरी थी और उसमें तरह-तरह के पेड़ों के साथ बहुत सारे बड़े-छोटे घास-फूस भी उगे हुए थे। पर गर्मी के कारण इन घास-फूस का भी बहुत ही बुरा हाल था और कुछ सूख गए थे तथा कुछ सूखने के कगार पर थे।
बगीचे में एकदम से सन्नाटा पसरा था, कहीं कोई आवाज नहीं थी पर ज्यों ही बिरजू भाई घोड़े के साथ इस बगीचे में प्रवेश किए, घोड़े तथा उनके पैरों के नीचे पेड़ से गिरे सूखे पत्तों के आते ही चरर-मरर की एक भयावह आवाज शुरु हो गई। यह आवाज इतनी भयावह थी कि बिरजू के साथ ही घोड़ा भी थोड़ा सहम गया।
बिरजू भाई अब उस बगीचे के भीतर प्रवेश करना ठीक नहीं समझे और किनारे ही एक पेड़ के नीचे पहुँच कर रुक गये।।
छाँव में उन्हें तथा घोड़े को थोड़ी राहत मिली पर प्यास के कारण उनका बुरा हाल हो रहा था।
बिरजू ने इधर-उधर नजर दौड़ाई पर कहीं पानी नजर नहीं आया।
थोड़ी हिम्मत करके घोड़े को वहीं छोड़कर पानी की तलाश में उस बगीचे के भीतर प्रवेश गया। उन्हें लगा कि शायद इस बगीचे के भीतर कोई तालाब हो, वह भले सूख गया हो पर शायद थोड़ा भी पानी मिल जाए।
बिरजू भाई अब अपने सर पर बँधी पगड़ी को खोलकर गमछे को कमर में बाँध लिए और मुस्तैदी से छड़ी हाथ में लिए बगीचे के अंदर घुस गये।
बगीचा बहुत ही घना था और उस खड़ी दुपहरिया में उस बगीचे में एक अजीब सा खौफनाक सन्नाटा पसरा था।
उसी सन्नाटे में रह-रहकर बिरजू भाई के पैरों की नीचे पड़ने वाले पत्ते और भी भयावह एहसास करा रहे थे।
बगीचे में काफी अंदर जाने पर बिरजू भाई को एक तालाब दिखा। उसमें स्वच्छ पानी भी था पर उस तालाब के किनारे का नजारा देखकर बिरजू भाई के कदम ठिठक गए।
अनायास की उनके माथे से पसीने की बूँदें टप-टपाने लगीं।
उनके कदम अब ना आगे ही बढ़ रहे थे और ना ही पीछे ही।
दरअसल तालाब किनारे कुछ भूत-प्रेत हुल्लड़बाजी कर रहे थे और अजीब से माहौल को डरावना बना रहे थे।
कुछ जैसे प्रेत योनि में चले गये थे और कुछ के एक पैर तो कुछ के चिर चार दिख रहे थे।
कुछ तो निशाचर जैसे लग रहे थे तो कुछ मासूम से सामान्य गंवई जैसे दिख रहे थे और हुल्लडबाजी में सबसे आगे थे।
अब बिरजू भाई क्या करें। 2-4 मिनट बाद कुछ हिम्मत कर मन ही मन हनुमानजी का नाम गोहराने लगे और धीरे-धीरे बिना पीछे मुड़ें, सामने देखते हुए पीछे की ओर चलने लगे।
चुपचाप कुछ देर चलने के बाद, अचानक घूम गए और जय हनुमानजी, जय हनुमानजी कहते हुए दौड़ कर घोड़े वाली दिशा में भागे।
घोड़े के पास पहुँचकर ही रूके।
घोड़े के पास पहुँचते ही वे घोड़े के शरीर पर हाथ रख दिए।
कहा जाता है कि घोड़ा साथ हो तो भूत-प्रेत से भड़कने से उसे रोकना बहुत मुश्किल होता है,उन्हें लगा कि अगर भूत-प्रेत हल्ला बोलेंगे तो वे घोड़े पर चढ़कर इस बगीचे से दूर हो जाएंगे।
पाँच मिनट तक वे घोड़े के पास ही उससे सटकर खडा़ रहा।
घोड़े के पास खड़े होने पर उसका डर थोड़ा कम हुआ और हिम्मत भी लौट आई।
बिरजू भाई सोचे कि अरे मैं तो गबरू जवान हूँ। रोज पहलवानी भी करता हूँ। अखाड़ें में कोई मेरी पीठ नहीं लगा पाता और मैं आज इतना डर गया।
अरे इन भूत-प्रेतों से क्या डरना। आज मैं हर हालत में इनका सामना करूँगा और देखता हूँ कि ये भूत-प्रेत मेरा क्या बिगाड़ पाते हैं?
अगर आवश्यकता पड़ी तो इन सबको ललकार दूँगा और दौड़ा-दौड़ाकर मारूँगा।
दरअसल बात यह थी कि बिरजू भाई बहुत ही निडर स्वभाव के थे और अकेले ही रात में गाँव से दूर तक घूम आते थे।
रात को नहर के पानी से दूर-दराज के खेतों को भी पटा आते थे और आवश्यक होने पर दूर-दराज के खेतों में भी अकेले ही सो जाते थे।
कभी-कभी तो वे अकेले ही दूर तक जंगल में भी चले जाते थे।
घोड़े के पास खड़े खड़े ही अचानक बिरजू भाई के जेहन में यह ख्याल आया कि क्यों नहीं घोड़े को लेकर इस तालाब के पास चला जाए।
हम दोनों को पीने का पानी भी मिल जाएगा और भूत-प्रेतों को और नजदीक से देखने का मौका भी।
बिरजू भाई घोड़े के गले में लगी रस्सी पकड़कर तालाब की ओर निर्भीक होकर बढ़ने लगे।
ज्योंही बिरजू भाई घोड़े को लेकर तालाब के पास पहुँचे, उनके पैरों के कारण चरमराते पत्तों आदि से उन भूत-प्रेतों के रंग में भंग पड़ गया।
सभी चौकन्ने होकर बिरजू भाई की ओर देखने लगे।
एक बड़ा भूत तो गुस्से में बिरजू भाई की ओर बढ़ा भी पर पता नहीं क्यों अचानक रूक गया और पास के ही एक पेड़ पर चढ़ बैठा।
बिरजू भाई निडर होकर तालाब के किनारे पहुँचे पर अरे यह क्या, वे तथा घोड़ा पानी कैसे पिएंगे, क्योंकि उनके आगे, थोड़ी दूर पर पानी के किनारे कई सारे डरावने भूत-भूतनी खड़े नजर आए।
कुछ का चेहरा बहुत ही भयावह था तो किसी की डरावनी चीख हृदय को कँपाने के लिए काफी थी।
घोड़ा भी पूरी तरह से सहम गया था और अब आगे नहीं बढ़ रहा था। बिरजू भाई कितना भी कोशिश करते पर घोड़ा आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहा था और भागने का मन बना रहा था।
बिरजू भाई ने अपनी हिम्मत को बनाए रखना ही ठीक समझा और घोड़े की रस्सी को और कसकर पकड़ लिए।
अब बिरजू भाई एक हाथ में छड़ी को नचाते हुए तथा घोड़े को खींचते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करने लगे।
वे दहाड़े कि मैं भूत-प्रेत से नहीं डरता और इस समय ये जानवर बहुत ही प्यासा है। मैं हर-हालत में अपनी जान की बाजी लगाकर भी इसको पानी पिलाने के बाद ही पीछे हटूँगा।
पर उधर भूत-भूतनी भी टस से मस होने का नाम नहीं ले रहे थे और कुछ तो अपना गुस्सा दिखाने के लिए पास की डालियों को कूदते-फाँदते, मोटी-पतली डालियों को तोड़ते नजर आने लगे।
कुछ पानी में कूदकर उसे गंदा भी करने लगे। अब तालाब का माहौल और भी डरावना होने लगा था, इतना डरावना कि कमजोर दिल वालों के मुँह में प्राण आ जाएँ।
खैर अब ना भूत-प्रेत ही पीछे हट रहे थे और ना ही बिरजू भाई ही। पर घोड़ा एकदम से डरा-सहमा खड़ा होकर इन भूत-प्रेतों को एकटक निहार रहा था। उसे पता ही नहीं चल पा रहा था कि यहाँ क्या हो रहा है।
अचानक बिरजू भाई अपनी ओर बढ़ते एक भयंकर भूत को, घोड़े की रस्सी पकड़े-पकड़े ही तेजी से आगे बढ़कर पानी में धकेल दिए और फिर से तेजी से आकर घोड़े के पास खड़े हो गए।
अब तो उन भूतों में से कुछ डरे-सहमे भी नजर आने लगे और पता नहीं चला कि कब कुछ भूत गायब ही गए।
पर अभी ५-७ भूत-भूतनी बिरजू भाई का रास्ता रोके खड़े थे।
अचानक उस बगीचे में तूफान आ गया। एक बहुत ही तेज आँधी उठी और उस आँधी में बहुत सारे पत्ते, सूखे खर-पात आदि तालाब के आसपास उड़ते नजर आए।
पेड़ों की डालियाँ एक दूसरे से टकराने लगीं और बिरजू भाई के साथ ही वहाँ उपस्थित भूत-प्रेत भी सहम गए क्योंकि उस समय किसी को पता नहीं चल रहा था कि यह क्या हो रहा है।
इसी तूफान के बीच वहाँ एक खूबसूरत युवती प्रकट हुई। उसे आते किसी ने भी नहीं देखा। उस नवयौवना के चेहरे पर एक खूबसूरत मुस्कान थी। उस नवयौवना को देखते ही सारे भूत-प्रेत अपना सर नीचे कर लिए, ऐसा लगा कि उसके सम्मान में झुक गए हों।
अचानक युवती सौम्य आवाज में बोली कि किसी प्यासे को पानी पीने से रोकना अच्छी बात नहीं। क्योंकि हम लोग भी तो पहले इंसान ही थे। आखिर हममें से भी कई तो कुछ दुर्घटनाओं के शिकार हुए हैं।
मुझे याद है एक बार मैं अपनी माँ, बहन तथा अपने गाँव की सखी-सहेलियों के साथ पैदल ही एक मेले में जा रही थी। उस समय मेरी उम्र कोई १५-१६ साल रही होगी। मेला मेरे गाँव से काफी दूर था। गर्मी का ही मौसम था और हम लोग घुरहुरिया (घास-फूस वाली पगडंडी) रास्ते से जा रहे थे।
अचानक रास्ते में कुछ ऐसा हुआ कि मैं अपने गोल से अलग होकर रास्ता भटक गई। और उन लोगों को खोजते-खाजते दूसरी दिशा में निकल गई।
अचानक डर के मारे और तेज धूप के कारण मुझे असहनीय प्यास लगी। और इधर-इधर खोजबीन करने के बाद भी पानी न मिलने के कारण मैं अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गई।
इतना कहते ही उस तरूणी प्रेतनी का चेहरा गुमसुम हो गया। आँखों से आँसुओं की धार बह चली।
बिरजू भाई भी भावुक हो चले। ऐसा लगा कि घोड़ा भी उस प्रेतनी के प्रति अपनी सहानुभूति दर्शा रहा हो, क्योंकि घोड़ा आगे बढ़कर उस तरूणी के पाँवों को चाट रहा था।
बिरजू भाई अपने जीवन में कभी ऐसी खूबसूरत भूतनी नहीं देखे थे। चूँकि वे कई बार रात-बिरात घर से दूर एकांत में रहते थे तो उन्हें भूत-प्रेतों से पाला तो पड़ ही जाता था पर पहली बार एक ऐसी भूतनी से मिले जिसके प्रति उनके दिल में प्रेम उमड़ आया।
अगर वह इंसान होती तो वे उसे जरूर लेकर अपने घर पर आते और उसकी खातिरदारी करते।
खैर उस नवयौवना प्रेतनी की बात सुनते ही सारे भूत तालाब से दूर हो गए और बिरजू भाई अपने घोड़े के साथ छककर पानी पिए।
उस तालाब का पानी भी बहुत मिठा था या ऐसा कह सकते हैं कि प्यास इतनी तीव्र थी कि वह पानी नहीं अमृत लग रहा था।
पानी पीने के बाद बिरजू भाई अपने अँगोछे को पानी में भिगोकर घोड़े के शरीर पर मलने लगे। घोड़े को अब पूरी राहत मिल चुकी थी।
बिरजू भाई मन ही मन उस तरूणी भूतनी का गुणगान करते हुए तालाब से बाहर आने लगे।
बगीचे से बाहर आने के बाद जब बिरजू भाई घूमकर तालाब की ओर देखे तो उस तरूणी भूतनी को बाहर के एक पेड़ के नीचे खड़े पाया।
वह प्रेतनी प्रेम-भाव से बिरजू भाई को निहार रही थी। बिरजू भाई दो मिनट खड़े रहकर उस प्रेतनी से नैनाचार किए तो उन्हें ऐसा लगा कि उन्हें उससे मुहब्बत हो गयी है और शायद फिर मिलने की आस लिए रामपुर की ओर चल दिए।
नोट- बिरजू भाई का इस तरुणी प्रेतनी से प्रेम प्रसंग और कई मुलाकातें आपको सिहरन, उत्तेजना, डर और विस्मय से भर देंगी, यदि आप इसकी सीरीज पढ़ने को उत्सुक हों। आपकी मांग और प्रतिक्रिया का लेखक को इन्तजार रहेगा। समाप्त
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Friday, June 14, 2019
घुमक्कड़ बिरजू की प्रेत प्रेमिका

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