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Tuesday, December 12, 2017

Azeeb Si Dhun - Sandeep Kumar Singh

अजीब सी धुन बजा रखी है
जिंदगी ने मेरे कानों में,
कहाँ मिलता है चैन
पत्थर के इन मकानों में।
बहुत कोशिश करते हैं
जो खुद का वजूद बनाने की
हो जाते हैं दूर अपनों से
नजर आते है बेगानों में।

हस्ती नहीं रहती दुनिया में
इक लंबे दौर तक,
आखिर में जगह मिलती है
उन्हें कहीं दूर श्मशानों में।
न कर गम कि
कोई तेरा नहीं,
खुश रहने की राह है
मस्ती के तरानों में

जान ले कि दुनिया
साथ नहीं देती,
कोई दम नहीं होता
इन लोगों के अफसानों में।
क्यों रहता है निराश
अपनी ही कमजोरी से
झोंक दे सब ताकत अपनी
करने को फतह मैदानों में।

खुद को कर दे खुदा के हवाले
ऐ इंसान
कि असर होता है
आरती और आजानों में,
करना है बसर तो
किसी की खिदमत में कर
वर्ना क्या फर्क है
तुझमें और शैतानों में।

करना है तो कर गुजर कुछ
किसी और की ख़ातिर
बन जाए अलग पहचान
तेरी इन इंसानों में
बन जाए अलग पहचान
तेरी इन इंसानों में।

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