मैं जानती हूं आज तू मुश्किल में घिर गया
तू ही नहीं ये वक्त तो कितनों का फिर गया
तेरा कसूर ये है कि तू सच के साथ था
वो झूठ था शैतान के पैरों में गिर गया
जब चांद भी आकाश में घटने की ओर था
इस धरा पे देखो तो बढ़ता तिमिर गया
ये झूठ और सच के तो बैर कब से रहे हैं
निर्दोष का ही पर सदा बहता रुधिर गया
यूं ही नहीं वो आज उस ऊंचाई पे चढ़ा
वो न्याय की बातों पे बस बनता बधिर गया
शिशिर मधुकर
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