इरशाद हो तो सब को अकेला भगा के आऊं ।
अजमेर चन्द आन में कैदी बना के आऊं ।
बाज़ीद ख़ां का सर भी अभी जा के मैं उड़ाऊं ।
इक सिंह एक लाख पि ग़ालिब हुआ दिखाऊं ।
शाबाश कह के सतिगुरू फ़ौरन खड़े हुए ।
ज़ुरअत पि पहरेदार की ख़ुश बड़े हुए ।
दीवान का अभी न हुआ इख़तताम था ।
गरदिश में अभी बादा-ए-इरफ़ां का जाम था ।
इतने में आ के कहने लगा इक ग़ुलाम था ।
पहरे पि जु खड़ा हुआ बाला-ए-बाम था ।
बोला : उदू की फ़ौज है घेरे हिसार को।
क्या हुक्म अब हुज़ूर का है जां-निसार को ।
ख़ेमे को अपने अपने रवां फिर जवां हुए ।
हथियार कस के ओपची शेर-ए-यियां हुए ।
जब कि किलाअ में बलन्द गुरू के निशां हुए ।
सामान-ए-जंग देख के सब शादमां हुए ।
सिंहों की फ़ौज हो चुकी आहन में ग़र्क थी ।
थे सर पि ख़ोद बर में ज़रह ता-बा-फ़रक थी ।
ख़ेमे से लैस हो के अकाली निकल पड़े ।
ख़ंजर उठाया, तेग़ संभाली, निकल पड़े ।
ले कर तुफ़ंग बाज़ दुनाली निकल पड़े ।
इतने में ग़ुल हुआ शहे-आली निकल पड़े ।
ख़ुरशीद देख सरवर-ए-फ़ौज-ए-अकाल को ।
किबल-अज़-दुपहर शर्म से पहुंचा ज़वाल को ।
जिस जा किया हुज़ूर ने जा कर क्याम था ।
चमकौर की गढ़ी में येह इक ऊंचा बाम था ।
इस जा से चार कूंट का नज़ारा आम था ।
दिखता यहां से लश्कर-ए-आदा तमाम था ।
असवार ही असवार फैले हुए थे रन में ।
पयादे थे या थी आदमी-घास उग पड़ी बन में ।
सतिगुर ने मौका मौका से सब को बिठा दिया ।
हर बुरज पि फ़सील पि पहरा लगा दिया ।
येह मोर्चा इसे, उसे वुह दमदमा दिया ।
सिंहों का इक हिसार किले में बना दिया ।
दीवार-ओ-दर पि, पुश्तों पि जब सिंह डट गए ।
डर कर मुहासरीन सभी पीछे हट गए ।
फ़रमाए कलग़ीधर कि अब इक इक जवां चले ।
पा पा के हुक्म भेड़ों में शेर-ए-ज़ियां चले ।
बच कर अद्दू के दायो से यूं पहलवां चले ।
दांतों में जैसे घिर के दहन में ज़बां चले ।
घुसते ही रन में जंग का पल्ला झुका दिया ।
जिस समत तेग़ तोल के पहुंचे भगा दिया ।
एक एक लाख लाख से मैदान में लड़ा ।
जिस जा पि सिंह अड़ गए, झंडा वहां गड़ा ।
चश्म-ए-फ़लक ने था जो न देखा वुह रन पड़ा ।
घोड़े पि झूमता इक अकाली जवां बढ़ा ।
ग़ुल मच गया जेह पांच प्यारों में एक है ।
बे-मिसाल है शुजाअ, हज़ारों में एक है ।
चिल्लाए बाज़्ज़ लो वुह दया सिंह जी बढ़े ।
खांडा पकड़ के हाथ में जीवत बली बढ़े ।
सतिगुर के बाग़ के हैं येह सरवे-सही बढ़े ।
लाशों के पाटने को सफ़र जन्नती बढ़े ।
इन सा दिलेर कोई नहीं है सिपाह में ।
सर नज़र कर चुके हैं, येह मौला की राह में ।
मुहकम की शकल देख के लहू नुचड़ गया ।
धब्बा अद्दू के जामा-ए-जुरअत पे पड़ गया ।
पटख़ा मरोड़ कर उसे हत्थे जु चढ़ गया ।
दहशत से हर जवान का हुलिया बिगड़ गया ।
साहब को देख मसख़ ख़त-ओ-ख़ाल हो गए ।
डर से सफ़ैद ज़ालिमों के बाल हो गए ।
No comments:
Post a Comment