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Friday, December 15, 2017

बेटी की विदाई – कंचन पाण्डेय ( उत्तर प्रदेश )

बेटी की विदाई
दस्तूर है क्या इस दुनिया का
वर्षों से जो अपने थे मेरे
एक दिन में पराये हो गये
अपना कहते थे हम जिनको
क्यों हमसे  जुदा वो हो गए
जिनके घर में बचपन बीता
जिनके बल पर चलना सिखा
इन नन्हें हाथों को जिसने
पकड़ कर हम को राह दिखाया
जिसके बल पर देखी दुनिया
दुनिया देखने के काबिल बनाया
आज उन्ही ने क्यों हमको
गैरों के हाथों में सौंप दिया
रहेंगे कैसे नए जीवन में
भूलेंगे कैसे उन यादों को
सीखी जिनसे जीने की कला
जो राह दिखाए जीवन की
क्यों जुदा हो गए वे मुझसे
क्या भूल गए वह अब मुझको
या खता हुई है कुछ मुझसे
कहती हूं अब यदि मैं उनसे
तो समझाते हैं वो मुझको
दस्तूर यही है दुनिया का
दस्तूर यही है दुनिया का
– कंचन पाण्डेय ( उत्तर प्रदेश )

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