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Saturday, December 9, 2017

हिन्दी कविता : चेहरा - Amresh Singh

कुटुंब की तस्वीर में,
जिसने जीवन रंग भरा।
शाम ढले मायूस हुआ,
कैसे ओ चेहरा।

1.

क्या-क्या किए प्रयास,
और क्या-क्या विपदाएं झेलीं।
करुणाभरी निगाह से,
अपनी देखी कहां हथेली।


मेहनत को प्रतिबिम्बित,
करता है घट्ठा उभरा।
शाम ढले मायूस हुआ,
कैसे ओ चेहरा।

2.

घात और प्रतिघातों से,
वो रहा खेलता खेल।
उम्र निचोड़-निचोड़ दिया,
सूखी बाती में तेल।

सपना उसकी उम्मीदों पर,
सच क्यों न उतरा।
शाम ढले मायूस हुआ,
कैसे ओ चेहरा।

3.

फौलादी कंधों पर,
अपने थामे रखा आसमान।
जीवन से जुड़ी हर,
मुश्किल किया स्वयं आसान।

अरमानों की फसल में,
सारी रात दिया पहरा।
शाम ढले मायूस हुआ,

कैसे ओ चेहरा।

4.

परिश्रम के पसीने से,
सींची हर एक क्यारी।
माली के मानिंद निभाई,
अपनी जिम्मेदारी।

उपवन की शोभा में,
'अमरेश' त्याग छिपा गहरा।
शाम ढले मायूस हुआ,
कैसे ओ चेहरा।

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